नई दिल्ली। वर्ष 2015 के दौरान देश में दाल की कीमतों में आई बेतहाशा तेजी के पीछे का कारण मल्टीनेशनल कंपनियों और दाल आयातकों की साठगांठ है। आयकर विभाग की एक जांच रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि दालों की कीमतों में वृद्धि के पीछे दाल आयातकों और बड़ी कंपनियों की साठगांठ एक बड़ी वजह है। मामला साल 2015 का है, जब देश में दाल के भाव 200 रुपए प्रति किलो तक चले गए थे।
आयकर विभाग की समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार 2015 में दाल आयातकों ने साठगांठ कर दाम बढ़ाए थे। समीक्षा रिपोर्ट में दाल की कमी होने की पुष्टि नहीं है, बल्कि दाल आयात करने वाली एमएनसी कंपनियों ने दाल महंगी की थी। रिपोर्ट में ग्लेनकोर, ईटीजी और एडलवाइस ग्रुप पर साठगांठ का आरोप लगाया गया है। जिंदल एग्रो और विकास ग्रुप भी साठगांठ में शामिल थे। दाल आयातकों पर घरेलू और विदेशी बाजार दोनों जगह जमाखोरी करने का आरोप है।
NCDEX ने आरोपों को नकारा
नेशनल कमोडिटी एक्सचेंज ने कहा है कि 2015 में दाल कीमतों में आई तेजी की जांच के लिए आयकर विभाग जो सर्वे कर रहा था एक्सचेंज उसमें सहयोग कर रहा था। एक्सचेंज ने कहा कि उसके प्लेटफॉर्म पर तुअर और उड़द का वायदा कारोबार जनवरी 2007 से बंद है और 2015 में उसके प्लेटफॉर्म पर सिर्फ चने का वायदा कारोबार होता था और उसे भी जुलाई 2016 में बंद कर दिया गया है।
एक्सचेंज ने कहा है कि 2012 से लेकर 2016 तक सभी दालों की कीमतों में तेजी आई है लेकिन चने का भाव उतना महंगा नहीं हुआ है जितनी महंगाई अन्य दालों मे देखने को मिली है। NCDEX के मुताबिक एक्सचेंज के बेहतर प्राइस डिस्कवरी सिस्टम की वजह से चने की कीमतें नियंत्रण में रही हैं।