कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट अब गुजरे जमाने की बात
2015 के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 37.4 डॉलर प्रति बैरल तक फिसल गईं। इसकी वजह से भारत के इंपोर्ट बिल में 2 लाख करोड़ रुपए की बचत हुई। यही वजह है कि पिछले महीने वित्त मंत्री अरूण जेटली ने कहा कि
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के कारण हम महंगाई पर काबू पाने में कामयाब रहें। इतना ही नहीं रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में कटौती की और तेल कंपनियों की आर्थिक हालात में सुधार आया।
लेकिन मौजूदा समय में कच्चे तेल की कीमतों पर नजर डालेंगे तो पता चलेगा कि गिरावट का दौर गुजरे जमाने की बात थी। जनवरी 2016 से अब तक ब्रेंट क्रूड की कीमतों में 64 फीसदी की तेजी आ चुकी है। गुरूवार के कारोबार में कच्चे तेल की कीमतें 50 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई जो इस साल में पहली बार हुआ। इससे पता चलता है कि कच्चे तेल की कीमतों में रिकवरी शूरू हो गई है।
कच्चे तेल की कीमतों में तेजी के ये हैं कारण
इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) के हेड नील एटकिंसन के मुताबिक 2016 और 2017 में कच्चे तेल की कीमतों में तेजी बनी रह सकती है। इसके मुख्य कारण कनाडा के जंगलों में आग लगने से ग्लोबल स्तर पर कच्चे तेल की सप्लाई 40 लाख बैरल रोजाना घट गई है। वहीं ओपेक सदस्य देश वेनेजुएला की खराब आर्थिक हालत और लीबिया और नाइजीरिया की एनर्जी इंडस्ट्री पर हिंसक हमलें तेल की कीमतों को सहारा दे रहे हैं।
बीते साल कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट के बाद भारत में कारों की संख्या तेजी से बढ़ी है। इसी वजह से ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि जापान को पीछ छोड़ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश बन सकता है। सप्लाई घटने और डिमांड बढ़ने से तेल महंगा होगा। कच्चे तेल की कीमतों के 60 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचने के आसार हैं। कीमतें 100 डॉलर तक जाएंगी इस पर विशेषज्ञों के बीच आशंका है।
महंगाई बढ़ने का खतरा
पीएम मोदी ने 28 मार्च को कहा कि बढ़ती जीडीपी के पीछे सरकार की नीतियां हैं, ना कि अच्छा भाग्य। लेकिन एक्सपर्ट मोदी की इन बातों से सहमत नहीं दिख रहे।
कोटक महिंद्रा बैंक के प्रबंध निदेशक उदय कोटक ने 17 मई को कहा कि कच्चे तेल में गिरावट की वजह से अर्थव्यवस्था को काफी फायदा पहुंचा। कच्चे तेल की ऊंची कीमत का मतलब है कि खाने-पीने की महंगाई से लेकर बुनियादी सुविधाएं जैसे बिजली तक महंगी हो जाएंगी। कच्चे तेल की कीमतों का सीधा संबंध ट्रांस्पोर्ट, रोजमर्रा की चीजों से है। यही वजह है कि अप्रैल में 17 महीने बाद पहली बार थोक महंगाई दर निगेटिव जोन से निकल कर 0.34 फीसदी पहुंच गई। रिटेल महंगाई 5.4 फीसदी रही। ऐसे में रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती पर ब्रेक लगा सकता है।
तस्वीरों में जानिए क्रूड से जुड़े फैक्ट्स
Facts of Crude oil
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अब व्यापार घाटा का क्या?
तेल की कम कीमतों का असर भारत के व्यापार घाटा पर भी पड़ता है। अप्रैल में भारत का व्यापार घाटा 4.8 अरब डॉलर रहा जो कि 2015 के मुकाबले 50 फीसदी कम है। पिछले साल यह आंकड़ा 10.9 अरब डॉलर था। इस गिरावट की प्रमुख वजह कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट थी। कच्चे तेल की कीमतों में लौटी तेजी के साथ ही व्यापार घाटा भी बढ़ जाएगा। व्यापार घाटा बढ़ने पर रुपया कमजोर होता है।
एक्सपोर्ट के लिए उम्मीद की किरण
कच्चे तेल की कीमतों से अगर किसी को फायदा हो सकता है तो वह है एक्सपोर्ट सेक्टर। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत कच्चा तेल इंपोर्ट करके रिफाइन करने के बाद तैयार प्रोडक्ट के एक्सपोर्ट करता है। अप्रैल में लगातार 17वें महीने भी एक्सपोर्ट में गिरावट दर्ज की गई। वहीं तेल की कम कीमत के कारण भारतीय पेट्रोलियम प्रोडक्ट की वैल्यू घट जाती है। दिसंबर में सरकार ने कहा था कि पेट्रोलीयम प्रोडक्ट का एक्सपोर्ट 52 फीसदी घटा है जिसके कारण निर्यात में गिरावट दर्ज की गई। इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में तेजी आई तो एक्सपोर्ट को बढ़ावा मिलेगा। जो एक उम्मीद की किरण है।
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