नई दिल्ली। घर खरीदारों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में संशोधन को संवैधानिक रूप से बरकरार रखने का आदेश दिया और कहा कि ये संशोधन घर खरीदारों के हितों की रक्षा करते हैं। जिसके बाद अब घर खरीदारों को वित्तीय लेनदार का दर्जा मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कंपनी दिवालिया घोषित होती है तो घर खरीदार भी लेनदार माने जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आईबीसी और RERA के तहत घर खरीदारों को वित्तीय लेनदारों के रूप में अधिकार दिया जाता है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि यह डेवलपर पर है कि वो साबित करे कि वह आवंटी डिफॉल्टर है। रियल एस्टेट कंपनियों के खिलाफ आवश्यकतानुसार, RERA प्राधिकरण, NCLT और NCDRC के समक्ष घर खरीदारों को कार्यवाही शुरू करने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि RERA को IBC के साथ सामंजस्यपूर्वक पढ़ा जाना चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 3 महीने के भीतर RERA के तहत प्राधिकारी नियुक्त करने को कहा है। कोर्ट ने केंद्र को यह भी सुनिश्चित करने को कहा है कि एनसीएलटी और एनसीएलएटी सही से काम कर रहे हैं या नहीं। सप्रीम कोर्ट ने कंपनियों की याचिका खारिज की है, जिसमें कहा गया था कि IBC एनसीएलटी के सामने 'एक तरफा सुनवाई' के लिए अनुमति देता है।
बता दें कि घर खरीदने वालों को वित्तीय लेनदार का दर्जा देने के खिलाफ 200 रियल एस्टेट डेवलपरों ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था और उनका कहना था कि ये संशोधन 'अवैध और असंवैधानिक' है। आईबीसी में संशोधन से रियल एस्टेट परियोजनाओं के अलाटी को 'वित्तीय लेनदार' माना जाएगा, और वे रियल एस्टेट डेवलपर के खिलाफ संहिता की धारा 7 के इस्तेमाल के लिए आवेदन दे सकेंगे। इसके अतिरिक्त, वित्तीय लेनदार होने के नाते, उन्हें लेनदारों की समिति में ही अधिकृत प्रतिनिधियों के माध्यम से जगह मिलेगी।
कोर्ट ने कहा कि ये संशोधन घर खरीदारों को वित्तीय कर्जदाता का दर्जा देते हैं जिससे उन्हें अपने हितों का बचाव करने के लिये ऋणदाताओं की समिति का हिस्सा होने का अधिकार मिलता है। उच्चतम न्यायालय का ये निर्णय ऐसे समय आया है जब बहुत से घर खरीदार अधूरी रीयल एस्टेट परियोजनाओं या अटकी परियोजनाओं को लेकर परेशान हैं।
न्यायालय ने कहा कि रीयल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 2016 (रेरा) को समरसता के साथ देखा जाना चाहिए और जहां आईबीसी तथा रेरा के बीच कोई टकराव उत्पन्न हो रहा हो तो आईबीसी के प्रावधान ही लागू होंगे।
आईबीसी में संशोधन को बरकरार रखते हुए और इसकी प्रकृति को मनमाना नहीं बताते हुए न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन एवं न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की खंडपीठ ने रीयल एस्टेट डेवलपरों की उस दलील को खारिज कर दिया कि रेरा आवासीय परियोजनाओं के लिए बनाया गया कानून है। खंडपीठ ने कहा कि घर खरीदारों द्वारा रियल एस्टेट कंपनियों को दिवालिया घोषित करने की याचिकाओं पर अदालतों को आंख मूंद कर आदेश पारित नहीं करना चाहिए, बल्कि केवल वास्तविक प्रकृति की याचिकाओं को ही अनुमति दी जानी चाहिए।
अदालत ने अपने आदेश में कहा, "रियल एस्टेट पंजीकरण अधिनियम (रेरा) और संहिता (आईबीसी) में सामंजस्य होना चाहिए। संहिता को संघर्ष की स्थिति में रेरा के ऊपर लागू करना चाहिए। शुरुआत में घर खरीदारों को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 और रेरा के तहत समाधान मुहैया कराना चाहिए। इससे समाधान न हो पाने पर ही संहिता लागू की जाए।"
साथ ही अदालत ने ये भी कहा कि आईबीसी पर तरजीह दिये जाने की जरूरत है क्योंकि आईबीसी सामान्य कानून है जो मुख्य रूप से दिवाला से जुड़े मामलों से निपटाता है। रीयल एस्टेट कंपनियों के संगठन नारेडको ने कहा है कि न्यायालय के आज के फैसले से अटकी परियोजनाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।