नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सहारा समूह को अपनी सभी संपत्तियों का विस्तृत ब्योरा मोहर-बंद लिफाफे में देने का निर्देश दिया ताकि यह पता लग सके कि क्या ये संपत्तियां निवेशकों को पूरा पैसा लौटाने के लिए पर्याप्त हैं। मुख्य न्यायाधीश टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने हालांकि सहारा प्रमुख सुब्रत रॉय को पेरोल पर रिहा करने की अनुमति देने से इंकार कर दिया और कहा कि अब तक उसके आदेश का अनुपालन मूलत: नहीं किया गया है। इस पीठ में न्यायाधीश ए आर दवे और न्यायाधीश ए के सिकरी भी हैं। रॉय चार मार्च 2014 से जेल में हैं।
पीठ ने कहा, हमें सहारा समूह की पूरी संपत्ति के बारे में जानना चाहिए। आखिर उनके पास कितनी संपत्ति है, हमें जानना चाहिए। फिलहाल समूह की 66 संपत्तियों की बिक्री होनी है, जिससे करीब 6,000 करोड़ रुपए प्राप्त होंगे। न्यायालय ने कहा, यह रॉय की जमानत के लिए पर्याप्त हो सकती है लेकिन इससे निवेशकों का पूरा धन चुकता नहीं हो पाएगा। हम चाहते हैं कि जो बाकी संपत्तियां हैं उन्हें भी सामने लाया जाए। इसीलिए आप संपत्ति की सूची सौंपे।
सहारा की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने रॉय के स्वास्थ्य में गिरावट की बात उठाई और उनको जेल से छोड़ने का अनुरोध किया। उन्होंने यह भी कहा कि बाजार नियामक सेबी को 66 संपत्तियां बेचने के लिए अधिकृत किया जा चुका है। पीठ ने कहा, जबतक निवेशकों का पैसा नहीं लौटाया जाता, हमें आदेश का पालन होता नहीं दिखता। किसी को जेल में रखना खुशी की बात नहीं है। परिस्थिति में बदलाव लाना होगा और हमारे आदेश का ठोस तरीके से पालन करना होगा। जब पीठ ने सहारा की भारत और विदेशों में संपत्ति का ब्योरा मांगा, धवन ने इस बारे में निर्देश प्राप्त करने और बंद लिफाफे में संपत्ति की सूची न्यायालय को सौंपने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। मामले की अगली सुनवाई 11 मई को होगी।