नई दिल्ली। कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के चलते राजस्व संग्रह कमी का सामना कर रहे राज्यों की उधारी चालू वित्त वर्ष में रिकॉर्ड 36 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 68 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की संभावना है। क्रिसिल की मंगलवार को जारी रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में राज्यों की आय में 15 प्रतिशत की गिरावट आयी है। जबकि उनकी उधारी 36 प्रतिशत बढ़कर 68 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है जो दशक का उच्च स्तर है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे राज्यों का आर्थिक प्रदर्शन करीब दो-चार प्रतिशत गिर सकता है। राज्यों के राजस्व में गिरावट की मुख्य वजह माल एवं सेवाकर (जीएसटी) संग्रह में कमी होना और लॉकडाउन के बाद खर्च में वृद्धि होना है।
क्रिसिल की यह रिपोर्ट देश के शीर्ष 18 राज्यों के वित्तीय हालात पर आधारित है। इसमें दिल्ली और गोवा भी शामिल हैं। ये सभी राज्य मिलकर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का करीब 90 प्रतिशत हिस्सा रखते हैं। रिपोर्ट में राज्यों का राजस्व घाटा चालू वित्त वर्ष में छह प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया है जो पिछले साल 1.5 प्रतिशत रहा था। वहीं राज्यों का सकल राजकोषीय घाटा बढ़कर 8.7 प्रतिशत पहुंचने का अनुमान है जो 2019-20 में 5.3 प्रतिशत था। इसके अलावा उनका कर्ज पिछले साल के 58 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 68 लाख करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान भी रिपोर्ट में जताया गया है।
हाल ही में केरल और प.बंगाल ने माल एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व में कमी की भरपाई के लिए कर्ज लेने के लिए केंद्र के प्रस्ताव को स्वीकार किया था। इसके साथ ही अब तक 25 राज्य इस विकल्प को चुन चुके हैं। प्रस्ताव को स्वीकार करने के बाद दोनों राज्य रिजर्व बैंक की विशेष सुविधा के तहत कुल 10,197 करोड़ रुपये का कर्ज प्राप्त कर सकेंगे। चालू वित्त वर्ष में जीएसटी क्षतिपूर्ति राजस्व में 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की कमी रहने का अनुमान है। इससे पहले केंद्र सरकार ने अगस्त में राज्यों को दो विकल्प दिये थे। पहले विकल्प के तहत रिजर्व बैंक के द्वारा 97 हजार करोड़ रुपये के कर्ज के लिये विशेष सुविधा दिये जाने, तथा दूसरे विकल्प के तहत पूरे 2.35 लाख करोड़ रुपये बाजार से जुटाने का प्रस्ताव है। केंद्र सरकार का कहना है कि जीएसटी क्षतिपूर्ति राजस्व में अनुमानित कमी में महज 97 हजार करोड़ रुपये के लिये जीएसटी क्रियान्वयन जिम्मेदार है, जबकि शेष कमी का कारण कोरोना वायरस महामारी है। अधिकांश राज्य रकम जुटाने के लिए पहले विकल्प को चुन रहे हैं।