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राज्‍यों का वित्‍तीय घाटा FY16 में बढ़कर हुआ 4.93 लाख करोड़ रुपए, 26 साल में बढ़कर हुआ 26 गुना

वित्त वर्ष 2015-16 में राज्यों का वित्‍तीय घाटा बढ़कर 4,93,360 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। यह घाटा वित्त वर्ष 1991-92 में 18,790 करोड़ रुपए था।

Abhishek Shrivastava
Published : June 24, 2017 18:15 IST
राज्‍यों का वित्‍तीय घाटा FY16 में बढ़कर हुआ 4.93 लाख करोड़ रुपए, 26 साल में बढ़कर हुआ 26 गुना
राज्‍यों का वित्‍तीय घाटा FY16 में बढ़कर हुआ 4.93 लाख करोड़ रुपए, 26 साल में बढ़कर हुआ 26 गुना

मुंबई। सबसे अधिक जनसंख्‍या वाले उत्‍तर प्रदेश और सबसे अधिक क्षेत्रफल वाले राजस्‍थान की वजह से वित्त वर्ष 2015-16 में राज्यों का वित्तीय घाटा बढ़कर 4,93,360 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। यह घाटा वित्त वर्ष 1991-92 में 18,790 करोड़ रुपए था। इस प्रकार देखा जाए तो पिछले 26 सालों में राज्‍यों का वित्‍तीय घाटा लगभग 26 गुना बढ़ गया है।

रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, वित्‍तीय घाटे में सबसे बड़ी आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश और सबसे बड़े इलाके वाले राज्य राजस्थान का हिस्सा बहुत बड़ा है। आरबीआई ने शनिवार को हैंडबुक ऑफ स्‍टेटिस्टिक्‍स ऑन स्टेट्स 2016-17 जारी किया। इसके मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 के लिए राज्यों के बजट अनुमानों के अनुसार यह 4,49,520 करोड़ तक रह सकता है।

वित्त वर्ष 1990-91 में उत्तर प्रदेश का वित्तीय घाटा महज 3,070 करोड़ रुपए था, जो वित्‍त वर्ष 2015-16 में बढ़कर 64,320 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। हालांकि, वित्त वर्ष 2016-17 में इसके घटकर 49,960 करोड़ रुपए रहने की संभावना संभावना व्यक्ति की गई है। इसी तरह, वित्त वर्ष 1990-91 में राजस्थान का वित्तीय घाटा महज 540 करोड़ रुपए था, जो 2015-16 में बढ़कर 67,350 करोड़ रुपए पर पहुंच गया। 2016-17 में यह घटकर 40,530 करोड़ तक आ सकता है।

रिजर्व बैंक के जारी आंकड़े से स्पष्ट है कि मौजूदा वित्त वर्ष में कुछ राज्यों का वित्तीय घाटे में सुधार की गुंजाइश है तो कई राज्यों की हालत और खराब होने वाली है। वित्त वर्ष 2017 में जिन राज्यों का वित्तीय घाटा सुधरने का अनुमान जताया गया है, उनमें उत्तर प्रदेश और राजस्थान के अलावा महाराष्‍ट्र, बिहार और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। वहीं दूसरी ओर रिजर्व बैंक ने गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल का वित्‍तीय घाटा वित्‍त वर्ष 2016-17 में और बढ़ने का अनुमान व्‍यक्‍त किया है।

आंकड़ों के इस प्रकाशन में ‘वन इंडिकेटर वन टेबल’ की पद्धति का अनुपालन किया गया है। इसमें साल 1950-51 से 2016-17 की अवधि में सभी राज्यों के सामाजिक-जनसांख्यिकी, स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्‍ट, कृषि, उद्योग, बुनियादी ढांचा, बैंकिंग, वित्तीय सूचकांक पर सभी उप-राष्ट्रीय सांख्यिकी का ध्यान रखा गया है। इसमें राज्य स्तर पर बिजली, प्रति व्यक्ति बिजली उपलब्धता, कुल बिजली क्षमता, बिजली की कुल जरूरत, राष्ट्रीय राजमार्ग, सड़क, स्टेट हाइवेज और रेल नेटवर्क की लंबाई भी शामिल है।

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