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राज्यों को घाटा लक्ष्य हासिल करने के लिए दी जासकती है और ढ़ील: एफआरबीएम समिति

राजकोषीय जवाबदेही रूपरेखा के अनुकरण के मामले में केंद्र के मुकाबले राज्यों का रिकॉर्ड बेहतर है और घाटा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अधिक ढ़ील दी जा सकती है।

Dharmender Chaudhary
Published on: April 13, 2017 19:58 IST
राज्यों को घाटा लक्ष्य हासिल करने के लिए दी जासकती है और ढ़ील: एफआरबीएम समिति- India TV Paisa
राज्यों को घाटा लक्ष्य हासिल करने के लिए दी जासकती है और ढ़ील: एफआरबीएम समिति

नई दिल्ली। राजकोषीय जवाबदेही रूपरेखा के अनुकरण के मामले में केंद्र के मुकाबले राज्यों का रिकॉर्ड बेहतर है और घाटा लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अधिक ढ़ील दी जा सकती है। यह बात एफआरबीएम समिति ने कही है। राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) समिति ने राज्यों के लिए राजकोषीय घाटा में सात साल तक सालाना 0.16 प्रतिशत की कमी की राह का प्रस्ताव किया है।

एन के सिंह की अध्यक्षता वाली समिति की रिपोर्ट में राज्यों का संयुक्त राजकोषीय घाटा को चालू वित्त वर्ष में 2.82 प्रतिशत से घटाकर 2024-25 तक 1.70 प्रतिशत लाने का सुझाव दिया गया है। राज्यों का ऋण-जीडीपी अनुपात के मामले में रिपोर्ट में कहा गया है कि यह चालू वित्त वर्ष में 21.65 प्रतिशत से घटकर 2024-25 तक 21.02 प्रतिशत पर आना चाहिए।

हालांकि, केंद्र के मामले में समिति चाहती है कि राजकोषीय घाटा 2022-23 तक घटाकर 2.5 प्रतिशत लाया जाए जो चालू वित्त वर्ष में 3.2 प्रतिशत है। राजकोषीय घाटा व्यय और प्राप्ति का अंतर है। केंद्र और राज्य सरकारें घाटे को पूरा करने के लिए बाजार से उधार लेती हैं जिससे सार्वजनिक ऋण बढ़ता है।

समिति ने केंद्र के ऋण-जीडीपी अनुपात मौजूदा 49 प्रतिशत से कम कर 2023 तक 40 प्रतिशत पर लाने का सुझाव दिया है। फिलहाल भारत का ऋण-जीडीपी अनुपात करीब 67 प्रतिशत है। इसमें केंद्र और राज्य शामिल हैं। केंद्र की अकेले इसमें 49 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

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