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महज 6 वर्षों में इन कारणों से स्‍नैपडील ने खोई अपनी चमक, वर्चस्‍व की लड़ाई में अमेजन से पिछड़ती कंपनी

फ्लिपकार्ट जैसी दिग्‍गज कंपनी को एक समय कड़ी टक्‍कर देने वाली स्‍टार्टअप कंपनी Snapdeal अपनी शुरुआत के 6 साल के भीतर ही चमक खोती दिख रही है।

Surbhi Jain
Published : July 09, 2016 7:23 IST
Dawn to Dusk: महज 6 वर्षों में इन कारणों से Snapdeal ने खोई अपनी चमक, वर्चस्‍व की लड़ाई में अमेजन से पिछड़ती कंपनी
Dawn to Dusk: महज 6 वर्षों में इन कारणों से Snapdeal ने खोई अपनी चमक, वर्चस्‍व की लड़ाई में अमेजन से पिछड़ती कंपनी

नई दिल्‍ली। फ्लिपकार्ट जैसी दिग्‍गज कंपनी को एक समय कड़ी टक्‍कर देने वाली स्‍टार्टअप कंपनी Snapdeal अपनी शुरुआत के 6 साल के भीतर ही चमक खोती दिख रही है। जापान के सॉफ्टबैंक और चीन की दिग्‍गज अलीबाबा के मजबूत सहारे के बावजूद कंपनी मात्र 3 साल पहले भारत में कदम रखने वाली ईकॉमर्स दिग्‍गज अमेजन के सामने लगभग पूरी तरह से हथियार डाल चुकी है।

ग्रेहाउंड रिसर्च के चीफ एनालिस्ट संचित वीर गोइया के मुताबिक अमेजन के आने के बाद पिछले कुछ वर्षों से Snapdeal पर आइडेंटिटी क्राइसिस पूरी तरह हावी हो चुका है।

विशेषज्ञों की मानें तो Snapdeal के पास न तो फ्लिपकार्ट की तरह इन हाउस लॉजिस्टिक इंफ्रास्ट्रक्चर है और न ही अमेजन जैसा कई वर्षों का अनुभव है। यही कारण है कि पहले ही वर्चस्‍व की दौड़ में तीसरे स्‍थान पर पिछड़ चुकी स्‍नैपडील को बाजार के जानकार धीमे और दर्दनाक अंत की ओर बढ़ता देख रहे हैं। आइए उन कारणों की पड़ताल करते हैं, जिन्‍होंने इस कंपनी के अर्श की बढ़ते ग्राफ को फर्श की ओर झुका दिया।

निवेशकों के भरोसे पर खरी नहीं उतर पाई कंपनी

स्नैपडील कंपनी की स्थापना वर्ष 2010 में दो युवा प्रोफेशनल कुणाल बहल और रोहित बंसल ने की थी। शुरुआती दौर में ही कामयाबी के झंडे गाड़ने वाली कंपनी की ग्रोथ और प्‍लानिंग पर दुनिया भर के निवेशकों ने भरोसा दिखाया था। स्नैपडील को जापान की सॉफ्टबैंक, अलीबाबा ग्रुप, ताइवान का फॉक्सकॉन ग्रुप, ईबे के अलावा वेंचर कैपिटल और प्राइवेट इक्विटी निवेशक जैसे कि ब्लैकरॉक, नैक्सस वेंचर पार्टनर, इंटेल कैपिटल और कलारी कैपिटल से आर्थिक मदद मिली है। इतने शक्तिशाली ग्रुप से मदद मिलने के बाद भी स्नैपडील अपने कस्टमर्स के बीच उपयोगिता खोता जा रहा है। एक ओर जहां अमेजन और फ्लिपकार्ट आक्रामक रणनीति के साथ आगे बढ़ रहे हैं, वहीं स्‍नैपडील जमीन खोती जा रही है।

फ्लिपकार्ट के वर्चस्‍व को नहीं तोड़ पाई स्‍नैपडील

हालांकि Snapdeal देश भर में सबसे ज्यादा अधिग्रहण करने वाली कंपनी है जिसमें मोबाइल पेमेंट स्टार्टअप, फ्रीचार्ज आदि शामिल है। वर्ष 2010 से स्नैपडील ने 13 कंपनियों का अधिग्रहण किया है जबकि फ्लिपकार्ट ने 9 कंपनियों का। स्नैपडील फ्लिपकार्ट की स्थापना (2007) के तीन वर्ष बाद स्थापित की गई थी। लेकिन अपनी स्थापना के 6 साल बाद भी कंपनी अपने प्रतिस्पर्धी से आगे नहीं निकल पाई। साल दर साल यह गैप बढ़ता जा रहा है। हालांकि यह दोनों कंपनियां अपनी वित्तीय आंकड़ें सार्वजनिक नहीं करती है। लेकिन उपलब्ध आंकड़ों से यह पता चला है-

  • वैल्युएशन– इस साल के शुरुआत में फ्लिपकार्ट को कई निवेशकों ने डिवल्यु (करीब 9 बिलियन डॉलर से 11 बिलियन डॉलर के बीच) कर दिया था। लेकिन इसके बाद भी इसकी वैल्यु स्नैपडील से ज्यादा है। अनुमान के मुताबिक इसकी वैल्यु इस साल फरवरी में 6.5 बिलियन डॉलर थी।
  • फंडिंग– फ्लिपकार्ट देश की सबसे ज्यादा फंड मिलने वाली कंपनी है। इसने करीब 3.5 बिलियन डॉलर 12 राउंड में जुटा लिए थे। ऐसा ऑनलाइन स्टार्टएप क्रंचबेस का मानना है। जबकि स्नैपडील ने 11 राउंड में केवल 1.7 बिलियन डॉलर जुटाए थे।
  • एप स्टेट– फ्लिपकार्ट की एंड्रॉयड एप के डाउनलोड स्नैपडील की तुलना में कई ज्यादा है। एंड्रॉयड प्ले स्टोर पर फ्लिपकार्ट एप को 4.2 रेटिंग मिली हुई है जबकि स्नैपडील को 4.1 ।
  • सेलर रिकॉल– भारतीय सैलर्स के बीच अमेजन सबसे पसंदीदा एप है। इसके बाद दूसरी पसंद लोगों की फ्लिपकार्ट है। ऐसा जून में की गई न्यूयॉर्क की मार्केट रिसर्च फर्म नीलसन की रिपोर्ट में सामने आया है। सैलर्स इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि  ज्यादा प्रोडक्ट वैरायटी वाली फर्म अपनी ओर ज्यादा ग्राहक आकर्षित करती हैं।

अमेजन से खतरा

अमेजन ने भारत में अपना कदम वर्ष 2013 में रखा था। यानि कि फ्लिपकार्ट के 6 साल और Snapdeal के तीन साल बाद। भारत में कंपनी की निवेश प्रतिबद्धता फ्लिपकार्ट और स्नैपडील की कुल जुटाए गए फंड्स से भी ज्यादा है। इस साल 28 मई को अमेजन के मंथली एक्टिव यूजर्स (एमएयू) 24.1 फीसदी थे जो कि स्नैपडील (13.1 फीसदी) की तुलना में कई ज्यादा है। भारत में जितने मोबाइल यूजर्स कंपनी एप को महीने में कम से कम एक बार खोलते हैं वह संख्या एमएयू होती है। वहीं अब अमेजन ने घोषणा की है वह भारत में 3 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त निवेश करने वाला है। ऐसे में साफ है कि स्‍नैपडील के लिए वक्‍त और भी मुश्किलें लेकर आने वाला है।

सॉफ्टबैंक के पूर्व प्रेजिडेंट निकेश अरोड़ा ने अमेजन को स्नैपडील के लिए खतरा बताया था। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि पिछले दो सालों में जेफ बोज भारत के बाजार पर किसी भी कीमत पर कब्जा करना चाहते हैं। वह भारत में कई करोड़ रुपए खर्च कर सकते हैं।

लगातार खराब होती स्नैपडील की स्थिति

स्नैपडील को अपने अंदरूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। साथ ही कंपनी अपने सेल्स टार्गेट पूरा करने में पीछे रह गई। कंपनी का जीएमवी केवल 4 बिलियन डॉलर रहा। जो कि सीईओ के 10 बिलियन डॉलर टार्गेट से काफी कम था। कंपनी में कई टॉप पोजिशन के लोगों ने इस्तीफा भी दिया है। जिसमें मार्केटिंग के सीनियर वाइस प्रेजिडेंट, चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर और इलेक्ट्रॉनिक्स के बिजनेस हेड शामिल हैं। फिलहाल देशभर में स्नैपडील के 3 लाख सेलर्स हैं और करीब 6000 शहर और कस्बों में स्‍नैपडील सामान की डिलिवरी करती है। मार्च 2016 में कंपनी की ग्रोस मर्चेंडाइस वैल्यु (मार्केटप्लेस में बेचे गए प्रोडक्ट्स का कुल मूल्य) करीब 4 बिलियन था। कंपनी हायरिंग में भी काफी धीमे चल रही है। मई में एक अंग्रेजी पत्रिका की रिपोर्ट में सामने आया था कि कंपनी ने अपने बैंगलुरु, मुंबई, कोलकता और हैदराबाद के ऑफिस बंद कर दिए हैं। इस बात को कंपनी ने सिरे नकार दिया है।

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