नई दिल्ली। दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन को अब भारत से बहुत डर लगने लगा है, क्योंकि भारत की टेक्नॉलजी और मैन्युफैक्चरिंग में तेजी से आगे बढ़ रहा है। हाल में जारी हुई कई आर्थिक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2017 से 2050 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था औसतन औसतन 4.9 फीसदी के विकास दर से आगे बढ़ेगी। इस हिसाब से विश्व अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी वर्तमान के 7 फीसदी से बढ़कर 15 फीसदी हो जाएगी। आइए जानते है कि कौन सी 5 असफलताओं से डर रहा है चीन
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(1) भारत की तेज आर्थिक ग्रोथ से डरा चीन
- चीन अभी कई मामलों में भारत से आगे है। इसके बावजूद हाल के दिनों में भारत को लेकर चीन की चिंताओं में इजाफा हुआ है। इसके पीछे कई क्षेत्रों में भारत को मिल रही सफलताएं हैं।
- पीडब्ल्यूसी ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा है कि भारत जिस तेज़ी से तरक्की कर रहा है वो बहुत कुछ चीन की याद दिलाता है।
- दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्थाएं सरकारी नियंत्रणों के कारण लंबे समय तक सुस्त चाल से चलती रहीं, मगर 90 के दशक में दोनों ही ने तेजी पकड़ी।
- चीन एक बड़ी मैनुफैक्चरिंग महाशक्ति बन गया। और भारत सर्विसेज़ की दुनिया का सितारा, ख़ासतौर से इन्फ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी की दुनिया में भारत का डंका बजने लगा।
(2) लंबी रेस में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी भारत से पिछड़ जाएगा चीन
- चीन को डर है कि लंबी रेस में वह मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में भी भारत से पिछड़ जाएगा।
- इसके पीछे की वजह चीन में लेबर कॉस्ट में तेजी से हो रहा इजाफा भी है।
- ग्लोबल टाइम्स ने एक आर्टिकल में चीन को इस क्षेत्र में भारत से सतर्क रहने की हिदायत दी है।
- आर्टिकल में एक हालिया अनैलेसिस के हवाले से बताया गया है कि 2016 में चीन में प्रतिघंटा मजदूरी दर भारत की तुलना में 6 गुनी ज्यादा है।
(3) भारतीय सस्ती टेक्नोलॉजी से बढ़ी घबराहट
- भारत ने एक साथ 104 सैटलाइट्स लॉन्च कर रूस के 37 सैटलाइट्स लॉन्चिंग का रेकॉर्ड तोड़ा।
- चीन मीडिया ने शुरुआत में इस खबर को हल्के में लिया लेकिन बाद में सुधार करते हुए लिखा कि चीन को भारत से स्पेस टेक्नॉलजी में सीख लेनी चाहिए।
- स्पेस सेक्टर में भारत की सफलता चीन के लिए ईर्ष्या की वजह है।
- कम खर्च वाली टेक्नॉलजी डिवेलप कर भारत ने स्पेस सेक्टर में चीन को पछाड़ दिया है।
- यह सिविल और मिलिटरी ऐप्लिकेशन पर भी प्रभावी है।
(4) चीन का विदेशी भंडार घटा, भारत का रिकॉर्ड स्तर पर
- चीन अपने विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट का सामना कर रहा है, जबकि भारत इस मामले में तेजी से आगे बढ़ रहा है।
- चीन के प्रीमियर की ‘मेड इन चाइना 2025’ जैसी पहल से विदेशी निवेशकों को रिझाने की हालिया कोशिश इस बात का सबूत है कि चीन को FDI रेस में भारत से पिछड़ने का खतरा है।
- 2015 में भारत इस मामले में चीन को पछाड़ भी चुका है। इस साल भारत में FDI 63 बिलियन डॉलर रहा, जबकि चीन (56.6 बिलियन डॉलर) और अमेरिका (59.6 बिलियन डॉलर) उससे पीछे रहे।
(5) चीन के भी चाहिए इंडियन टैलंट
- अमेरिकी की एक सॉफ्टवेयर फर्म ने चीन में अपने करीब 300 लोगों की रिसर्च टीम को खत्म कर दिया। इसी फर्म ने हाल के कुछ सालों में भारत में करीब 2000 वैज्ञानिकों और टेक्निकल प्रफेशनल्स की टीम तैयार की है।
- यह एक घटना इस बात का संकेत है कि भारत के पास चीन की तुलना में बेहतर टैलंट पूल है। ग्लोबल टाइम्स ने भी इस संबंध में लिखा कि कुछ हाईटेक फर्म कम लेबर कॉस्ट की वजह से चीन को छोड़ भारत का रुख कर रही हैं।
(6) भारत-अमेरिका के बढ़ते सैन्य संबंध से बढ़ी चीन की चिंता
- पिछले साल भारत और अमेरिका ने साजो-सामान संबंधी आदान-प्रदान समझौते (LEMOA) के रूप में एक अहम पड़ाव हासिल किया है। हालांकि चीन की मीडिया ने इस डील को भी नजरअंदाज करने की कोशिश की, लेकिन यह चीन के लिए बड़ी चिंता की बात है।
- इस डील के स्पष्ट मायने हैं कि अमेरिका अब न केवल हिंद महासागर में प्रभुत्व स्थापित करेगा बल्कि दक्षिणी चीन सागर तक भी आसानी से पहुंच जाएगा। ऐसा इसलिए क्योंकि डील के बाद यूएस के वॉरशिप्स भारतीय बंदरगाहों पर रह सकेंगे और मरम्मत करा सकेंगे।