मुंबई। कोविड महामारी की दूसरी लहर के दौरान लोगों के बैंक जमा और हाथ में रखी नकदी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। यह बताता है कि महामारी के कारण इलाज पर खर्च से लोगों का अच्छा-खासा पैसा निकला है। रिजर्व बैंक की मासिक पत्रिका में अधिकारियों के एक लेख में यह कहा गया है। इसमें कहा गया है कि एक परिवार की कुल संपत्ति में बैंक जमा की हिस्सेदारी करीब 55 प्रतिशत होती है। मासिक आधार पर अप्रैल 2021 के अंत में इसमें 0.1 प्रतिशत की गिरावट आयी जबकि अप्रैल 2020 में इसमें 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी।
लेख में कहा गया है कि बैंक कर्ज की तुलना में बैंक जमा में गिरावट की दर भी अधिक रही है। यह बताता है कि इस बार बैंकों में जमा की जाने वाली घरेलू बचत घटी है। यह पहली लहर के दौरान देखी गई बचत में वृद्धि के उलट है। इसमें कहा गया है, ‘‘लोगों के पास नकदी भी अप्रैल 2021 में उल्लेखनीय रूप से कम हुई है और 1.7 प्रतिशत रही जबकि एक साल पहले इसी माह में इसमें 3.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। इसका मतलब है कि कोविड महामारी के कारण इलाज पर लोगों का काफी पैसा खर्च हुआ है।’’
लेख में कहा गया है कि अनिश्चतता जब अधिक होती है, लोग एहतियातन अधिक बचत करते हैं और सोच-विचार कर किये जाने वाले खर्च में कमी आती है। यह महामारी अवधि में निजी अंतिम उपभोक्ता व्यय के आंकड़े से प्रतिबिंबित होता है। आरबीआई के प्रारंभिक अनुमान के अनुसार परिवार की वित्तीय बचत 2020-21 की तीसरी तिमीही में घटकर 8.2 प्रतिशत पर आ गयी जो इससे पिछली दो तिमाहियों में क्रमश: 21 प्रतिशत और 10.4 प्रतिशत थी।
‘लिक्विड फंड’ में बढ़ी बचत
उच्च धनाढ्य व्यक्तियों (एचएनआई) और व्यक्तियों की ‘लिक्विड फंड’ (ऐसा कोष जहां से तुंरत पैसा निकालना संभव हो) में बचत बढ़ी है। यह कोविड-19 महामारी और उसकी रोकथाम के लिये लगाये गये ‘लॉकडाउन’ के कारण उत्पन्न अनिश्चितताओं को बताता है। परिवार ने अपना पैसा स्वर्ण एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) में भी लगाया। लेख के अनुसार, ‘‘उसके बाद से धनाढ्यों ने ‘लिक्विड फंड’ से पैसा निकाला है जबकि खुदरा निवेशकों (व्यक्ति) ने बचत के रूप में अपना पैसा वहां रखा हुआ है।’’ वहीं अमीर लोगों (एचएनआई) और खुदरा निवेशकों का स्वर्ण ईटीएफ में निवेश जून 2020 से सकारात्मक है।