जयपुर। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने कई सुधारवादी कदम उठाते हुए म्यूचुअल फंडों को रियल एस्टेट निवेश न्यासों (रेइट) और बुनियादी ढांचा निवेश न्यासों (इनविट) में निवेश की छूट देने का निर्णय किया है। इसके अलावा ब्रोकर शुल्क घटाने की ब्रोकरों की लंबे समय से चली आ रही मांग को पूरा करते हुए इस शुल्क को प्रति एक करोड़ रुपए के कारोबार पर 20 रुपए से 25 प्रतिशत घटा कर 15 रुपए कर दिया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की म्यूनिसिपल बांड निर्गम को प्रोत्साहित करने की हाल की अपील के बाद सेबी बोर्ड ने यहां हुई अपनी बैठक में म्यूनिसिपल बांड निर्गम के बारे में संशोधित नए नियमों की भी मंजूरी दी है। सेबी ने वित्तीय निवेश के एक उत्पाद के रूप में म्यूचुअल फंड के प्रति जागरुकता बढ़ाने के उद्येश्य से चर्चित हस्तियों को उद्योग के स्तर पर इसके विज्ञापनों में भाग लेने की अनुमति दे दी।
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- लेकिन किसी म्यूचुअल फंड की ब्रांडिंग के लिए या उनकी किसी खास निवेश योजना के प्रचार के मामले में यह छूट लागू नहीं होगी।
- म्यूचुअल फंड उद्योग के विज्ञापनों में चर्चित हस्तियों को प्रस्तुत करने वाले विज्ञापनों को जारी करने से पहले उनके लिए सेबी की अनुमति लेना अनिवार्य होगा।
- सेबी ने म्यूचवल फंड कंपनियों के लिए विज्ञापन की एक नई संहिता जारी की है, जिसके तहत उन्हें जनता के सामने सीधे सादे तरीके से अपनी बात रखनी होगी।
- सेबी ने रेइट और इनविट की यूनिटों को हाईब्रिड (मिश्रित) प्रतिभूति बताते हुए उनमें म्यूचवल फंड के निवेश का रास्ता खोला है।
- म्यूचुअल फंड को रेइट और इनविट में एक निर्गमकर्ता की यूनिटों में अपने कुल संपत्ति के मूल्य का केवल पांच प्रतिशत तक निवेश करने की छूट होगी।
- रेइट और इनविट से संबंधित इंडेक्स फंड या किसी क्षेत्र या उद्योग विशेष से संबंधित योजना में निवेश पर यह सीमा लागू नहीं होगी।
- रेइट और इनविट की यूनिटों में यह सीमा फंड के शुद्ध परिसंपत्ति मूल्य (एनएवी) के 10 प्रतिशत तक होगी।
- इंडेक्स फंड के मामले में यह सीमा लागू नहीं होगी।
- नगर निकायों के बांडों की सार्वजनिक बिक्री करने के नियमों में संशोधन का निर्णय किया, जिसके तहत ठीक पहले के तीन साल अपनी आमदनी और खर्च के आधार पर बचत का रिकॉर्ड प्रस्तुत करने वाले निकायों को बांड का सार्वजनिक निर्गम प्रस्तुत करने का पात्र माना जाएगा।
- यह पात्रता सेबी द्वारा समय-समय पर जारी वित्तीय कसौटियों के आधार पर भी तय होगी।
- मौजूदा नियमों के तहत तीन साल तक संपत्ति से कहीं अधिक देनदारी के बोझ में पड़े निकाय को सार्वजनिक बांड जारी करने की छूट नहीं होगी।