मुंबई। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश में अवैध रूप से चलने वाली सार्वजनिक जमा योजनाएं या पोंजी स्कीम मनी लांड्रिंग का एक बड़ा जरिया भी हैं। उन्होंने आश्चर्य जताया कि इसी तरह के बहुचर्चित सहारा मामले में तमाम लोग अपना धन वापस लेने का दावा करने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं।
सेबी के पूर्णकालिक सदस्य एस रमण ने कहा, जहां तक सहारा का सवाल है, हमारे पास एक अच्छी खासी राशि है लेकिन कोई ज्यादा दावेदार नहीं हैं। यह एक सवाल है कि आखिर कोई दावेदार क्यों नहीं है, जबकि हमने कई विज्ञापन दिए और धन लौटाने के लिए आवेदन मांगे। रमण ने कहा कि इस प्रकार की योजनाओं में बड़े पैमाने की मनी लांड्रिंग का तत्व भी होता है।
रमण ने कहा कि सहारा मामले में ट्रकों में भरकर दस्तावेज दिए गए, जो एक-दूसरे से जुड़े नहीं थे और उन दस्तावेजों को देखना एक दुष्कर कार्य था, जिसे दुनिया में किसी भी नियामक ने नहीं किया। उन्होंने कहा, हमारी इच्छा है कि जहां तक हो सके लोगों का पैसा वापस किया जाए। सहारा का सेबी के साथ लंबे समय से विवाद चल रहा है जो कुछ बांड निर्गमों के जरिये लोगों से धन जुटाने से जुड़ा है। सहारा समूह से हजारों करोड़ रुपए ब्याज के साथ निवेशकों का पैसा सेबी के जरिये लौटाने को कहा गया है। सहारा समूह का दावा है कि वह 95 फीसदी निवेशकों को पहले ही धन लौटा चुका है।
सेबी के पास ताजा आंकड़ों के अनुसार उसे अपने सहारा धन वापसी खाते में 11,272 करोड़ रुपए ब्याज के साथ मिले हैं, जबकि रिफंड का दावा करने वाले निवेशकों को इसमें से केवल 55 करोड़ रुपए लौटाए गए हैं। पर्ल ग्रुप की इकाई पीएसीएल से जुड़े एक अन्य मामले का जिक्र करते हुए रमण ने कहा कि हाल में पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढ़ा की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है। समिति समूह की संपत्ति का ब्योरा प्राप्त करने की कोशिश कर रही है। सेबी ने कंपनी से निवेशकों से वसूले गए 50,000 करोड़ रुपए लौटाने को कहा है।