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विदेशी फंड मैनेजर भारत में आकर कर सकेंगे काम, सेबी ने नियम आसान बनाने को दी मंजूरी

भारत में अपना ठिकाना बनाने के इच्छुक विदेशी फंड मैनेजर्स के लिए रास्ता आसान बनाने हेतु पूंजी बाजार नियामक सेबी के निदेशक मंडल ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है

Abhishek Shrivastava
Published : June 17, 2016 21:55 IST
विदेशी फंड मैनेजर भारत में आकर कर सकेंगे काम, सेबी ने नियम आसान बनाने को दी मंजूरी
विदेशी फंड मैनेजर भारत में आकर कर सकेंगे काम, सेबी ने नियम आसान बनाने को दी मंजूरी

मुंबई। भारत में अपना ठिकाना बनाने के इच्छुक विदेशी फंड मैनेजर्स के लिए रास्ता आसान बनाने हेतु पूंजी बाजार नियामक सेबी के निदेशक मंडल ने एक प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसमें विदेशी फंड मैनेजर्स को पोर्टफोलियो मैनेजर के तौर पर काम करने की मंजूरी दी गई है।

सेबी का यह कदम इस लिहाज से भी उल्लेखनीय है कि सरकार ने उन विदेशी फंड मैनेजर्स को टैक्‍स प्रोत्साहन देने की घोषणा की है, जो कि फिर से भारत में आने के इच्छुक हैं। सेबी निदेशक मंडल की यहां हुई बैठक में इस संबंध में एक परिचर्चा पत्र जारी करने को मंजूरी दी गई। यह पत्र सेबी (पोर्टफोलियो प्रबंधक) नियमन 1993 में संशोधन को लेकर जारी किया जाएगा। इसके जरिये विदेशी फंड हाउसों को फिर से भारत में अपना ठिकाना बनाने में सुविधा होगी। नियमों में प्रस्तावित संशोधन में पात्र फंड मैनेजर्स में एक अलग वर्ग जोड़ा जाएगा, जिसमें उनके लिए शर्तों का विवरण होगा और ये शर्तें पोर्टफोलियो प्रबंधकों के तौर पर उनकी गतिविधियों पर लागू होंगी।

रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी पंजीकरण के नियम सरल किए 

भारतीय रिजर्व बैंक ने नई गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के लिए पंजीकरण के नियमों को सरल किया है। इसके लिए उसने आवेदन फॉर्म को कम किया है एवं जरूरी दस्तावेजों की सूची को 45 से घटाकर आठ कर दिया है। बैंक ने बताया कि अब से जमा स्वीकार नहीं करने वाली एनबीएफसी (एनबीएफसी-नॉनडिपोजिट) कंपनियों के लिए दो आवेदन फॉर्म होंगे, जो इनके धन के स्रोत और और ग्राहकों के साथ सम्मर्क के आधार पर होंगे।

इनके पंजीकरण की प्रक्रिया तेजी से पूरी की जाएगी क्योंकि ऐसी कंपनियों के पास आम जनता के कोष तक पहुंच नहीं होगी और ना ही यह ग्राहक से संपर्क करेंगी। टाइप-1 या पहले प्रकार की कंपनियों के आवेदनों के निपटाने की प्रक्रिया तेज होगी और जांच-पड़ताल अपेक्षाकृत कम होगी क्योंकि इनके पास जनता का कोष नहीं होगा और उपभोक्ता से उनका संपर्क नहीं होगा। यदि वे ऐसा करना चाहती हैं तो उन्हें रिजर्व बैंक से अनुमति लेनी होगी। इसके अलावा बैंक को यदि उनसे किसी और दस्तावेज की जरूरत होगी तो बैंक उनसे संपर्क करेगा और आवेदक कंपनी को उसके एक महीने के भीतर बैंक को जवाब देना होगा।

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