नई दिल्ली। SEBI ने प्रतिभूति कानून में संशोधन के संबंध में सरकार से अपील करने की योजना बनाई है। Sebi नियमों के उल्लंघन से जुड़े मामलों में मौद्रिक जुर्माना तय करने में निर्णय करने वाले अधिकारियों के विवेकाधीन अधिकारों में स्पष्टता चाहता है। उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल में नियामक की एक याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि निर्णय अधिकारी को सेबी अधिनियम के एक खास प्रावधान के तहत ही दंड की राशि तय करने का अधिकार है। इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सेबी संशोधन अधिनियम, 2002 के मुताबिक और सेबी संशोधन अधिनियम 2014 से पहले सेबी के निर्णय अधिकारी के विशेषाधिकार वापस ले लिए गए थे जिन्हें 2014 के संशोधन के बाद प्रभावी तरीके से बहाल कर दिया गया था।
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रूफिट इंडस्ट्रीज के मामले में सेबी ने प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण के दंड की राशि घटाने के फैसले को चुनौती दी थी। इस संबंध में याचिका को खारिज करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सेबी कानून की धारा 15जे को स्वीकार नहीं किया जिसमें न्यायिक अधिकारी को जुर्माने की राशि तय करने का अधिकार दिया गया है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि न्यायालय के फैसले से ऐसी स्थिति बनी है जिसमें कि 2002-2014 की अवधि के दौरान मामूली उल्लंघन में भी भारी-भरकम जुर्माना लगाया गया।
इसके अलावा प्रतिभूति एवं अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) ने सेबी के कई आदेशों को यह कहते हुए वापस कर दिया कि नए सिरे से आदेश जारी किया जाना चाहिए। इससे अपील के निपटान में देरी हुई। इस साल मार्च में करीब 3,000 मामले न्यायिक प्रक्रिया में लंबित थे जबकि 36 मामलों को नए आदेश जारी करने के लिए सेबी को वापस भेज दिया गया। लंबित मामलों में 90 फीसदी मामले 2002 से 2014 की अवधि के हैं।
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