नई दिल्ली। सोल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसएिशन (एसईए) ने सोमवार को कहा कि भारत का मलेशिया और इंडोनेशिया के साथ 2010 से जारी खाद्य तेल समझौता समाप्त हो गया है, ऐसे में सरकार को सोया, सूरजमुखी और कच्चे पॉम तेल पर सीमा शुल्क बढ़ाना चाहिए और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए। साथ ही एसईए ने सरकार से घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये रिफाइंड पॉम तेल या पॉमोलीन के आयात पर पाबंदी लगाने का आग्रह किया है। उद्योग संगठन ने देश को खाद्य तेलों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने के लिए ये कुछ अल्पकालीन सुझाव सरकार को दिये हैं।
एसईए के अध्यक्ष अतुल चतुर्वेदी ने एक बयान में कहा, ‘‘कोई भी देश अपनी सालाना खपत के करीब 70 प्रतिशत के बराबर आयात कर अपनी खाद्य तेल सुरक्षा से समझौता करने का जोखिम नहीं उठा सकता। यह स्थिति प्राथमिक आधार पर सुधारात्मक कदम उठाने की जरूरत को रेखांकित करता है।’’ उन्होंने कहा कि पिछले कई साल से खाद्य तेलों पर कम आयात शुल्क से हमारे किसानों की तिलहन की खेती में रूचि कम हुई है। इसमें कोई अचंभा नहीं होगा कि देश का तिलहन उत्पादन स्थिर रहे लेकिन समृद्धि के साथ खाद्य तेल की खपत में तीव्र वृद्धि हो और इसमें सालाना तीन से चार प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है।’’ हालांकि उन्होंने कहा कि पिछले कुछ साल से इस विसंगति को दूर करने का प्रयास हो रहा है। चतुर्वेदी ने कहा कि भारत ने इंडोनेशिया और मलेशिया के साथ 2010 में जो समझौता किया था, उससे हमारी सरकार को शुल्क बढ़ाने की अनुमति नहीं थी लेकिन अच्छी खबर यह है कि समझौते की अवधि अब समाप्त होने वाली है और भारत शुल्क दरें बढ़ाने को स्वतंत्र है।
एसईए ने सरकार से सोया और सूरजमुखी पर आयात शुल्क मौजूदा 37.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 45 प्रतिशत जबकि कच्चे पॉम तेल पर 50 प्रतिशत करने का सुझाव दिया है। साथ ही संगठन ने रिफाइंड पॉम तेल या पॉमोलीन के आयात पर पूर्ण पाबंदी लगाने को कहा है। चतुर्वेदी ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि उक्त उपायों से स्थानीय तौर पर तिलहन की कीमतें बढ़ेंगी, इससे हमारे तिलहन की खेती करने वाले किसान इसका उत्पादन बढ़ाने को लेकर प्रेरित होंगे। साथ ही इससे सरकार का राजस्व बढ़ेगा।’’ उन्होंने कहा कि रिफाइंड पॉम ऑयल पर पाबंदी से भारतीय रिफाइनिंग उद्योग को इस मुश्किल समय में नौकरियां बचाने में मदद मिलेगी। उन्होंने यह भी कहा कि पॉम रिफाइनिंग उद्योग में क्षमता उपयोग फिलहाल 30 प्रतिशत है और मुद्रास्फीति में तीव्र वृद्धि की आशंका पूरी तरह निराधार है। एसईए ने बिना किसी देरी के ‘ऑयलसीड मिशन’ भी शुरू करने और इस क्षेत्र में निजी कंपनियों को आने की अनुमति देने की वकालत की। संगठन ने दीर्घकालीन उपायों के रूप में सरकार को पंजाब और हरियाणा के किसानों को खरीफ मौसम में सूरजमुखी और रबी मौसम में सरसों की खेती के लिये प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया है।