नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने एस्सार स्टील मामले में राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के चार जुलाई के आदेश को शुक्रवार को रद्द कर दिया। इससे कर्ज में डूबी इस कंपनी के वैश्विक इस्पात कंपनी आर्सेलरमित्तल द्वारा अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है। एनसीएलएटी ने वित्तीय कर्जदाताओं और परिचालन कर्जदाताओं को एक बराबर समझने का आदेश दिया था। आर्सेलरमित्तल ने दिवाला प्रक्रिया के तहत एस्सार स्टील के लिए 42,000 करोड़ रुपए की बोली लगाई है।
न्यायमूर्ति आर. एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि दिवाला प्रक्रिया और कर्ज के बोझ में दबी किसी कंपनी के अन्य कंपनी द्वारा अधिग्रहण के दौरान दोनों तरह के कर्जदाताओं को अलग-अलग तरीके से देखा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रहमण्यम भी इस पीठ के सदस्य हैं। पीठ ने कहा कि ऐसा कोई सिद्धांत नहीं है कि वित्तीय कर्जदाता और परिचालन कर्जदाता को समान तौर पर देखा जाए। पीठ ने कहा, 'एनसीएलएटी का फैसला निश्चित तौर पर खारिज किया जाना चाहिए क्योंकि इस फैसले में उसने कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) के व्यावसायिक समझ की जगह अपनी समझ को स्थापित कर दिया और इस फैसले में कई तरह के दावों को दाखिल करने की अनुमति दे दी।'
पीठ ने कहा कि दिवाला संहिता के तहत निपटान प्रक्रिया में वित्तीय कर्जदाताओं को परिचालन कर्जदाताओं के आगे प्राथमिकता दी गयी है। फैसला करने वाला अधिकारी कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) द्वारा स्वीकृत फैसले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। वादियों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि एनसीएलएटी ने अपने आदेश में कहा था कि दिवाला एवं ऋण शोधन प्रक्रिया के तहत कर्ज में डूबी कंपनी के अधिग्रहण के दौरान हर तरह के कर्जदाता को उनके बकाया का 60.7 प्रतिशत मिलेगा।
यह फैसला एनसीएलएटी के चार जुलाई के आदेश को चुनौती देने वाली कर्जदाताओं की समिति और अन्य दीवानी याचिकाओं पर पर आया है। एस्सार स्टील ने अदालत के फैसले पर प्रतिक्रिया में कहा, 'हम आर्सेलरमित्तल और निप्पॉन स्टील को भारतीय बाजार में उनके प्रवेश करने पर बधाई देते हैं। वह बाजार में विश्वस्तरीय सुविधा वाले संयंत्र का अधिग्रहण करने जा रहे हैं जिसमें वृद्धि की बहुत संभावनाएं हैं।'
आर्सेलरमित्तल ने उच्चतम न्यायालय के फैसले पर खुशी जतायी। कंपनी ने कहा, 'हम जल्द ही अधिग्रहण प्रक्रिया पूरा होने की उम्मीद कर रहे हैं। हम निर्णय से बहुत खुश हैं कि उनकी समाधान योजना को मंजूरी मिल गई है।' न्यायालय ने स्पष्ट किया कि इस मामले में दिवाला प्रक्रिया आर्सेलरमित्तल द्वारा 23 अक्टूबर 2018 को सुझायी गयी उस समाधान योजना के अनुरूप क्रियान्वित होगी जिसे सीओसी ने संशोधित कर 27 मार्च 2019 को मंजूरी दी थी।
न्यायालय ने कहा कि अलग-अलग श्रेणियों के कर्जदाताओं को भुगतान दिवाला एवं ऋणशोधन संहिता के नियम 38 और धारा 30(2) के हिसाब से किया जाएगा। शीर्ष अदालत ने कहा कि फैसला करने वाला प्राधिकरण समाधान योजना को दिशानिर्देशों के अनुरूप सीओसी के पास भेज सकता है लेकिन कर्जदाताओं की समिति द्वारा लिए गए वाणिज्यिक फैसले में बदलाव नहीं कर सकता है।
पीठ ने समाधान खोजने के लिये दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता के तहत निर्धारित 330 दिन की समयसीमा में भी ढील दी है। यह फैसला एनसीएलएटी के चार जुलाई के आदेश को चुनौती देने वाली कर्जदाताओं की समिति की याचिका पर आया है। न्यायाधिकरण ने एस्सार स्टील के अधिग्रहण के लिए दिग्गज इस्पात कारोबारी लक्ष्मी मित्तल की अगुवाई वाली आर्सेलरमित्तल की 42,000 करोड़ रुपए की बोली को मंजूरी दी थी।
हालांकि, एनसीएलएटी ने आर्सेलरमित्तल की बोली राशि के वितरण में कर्जदाताओं और परिचालन कर्जदाताओं को बराबर का दर्जा दिया था। दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता के तहत नीलाम की गई एस्सार स्टील पर वित्तीय कर्जदाताओं और परिचालन कर्जदाताओं का 54,547 करोड़ रुपए का बकाया है।