नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कर्ज में डूबी एस्सार स्टील के अधिग्रहण के लिए आर्सेलरमित्तल की 42,000 करोड़ रुपए की बोली को मंजूरी देने के साथ ही राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उसने अधिग्रहण से प्राप्त राशि को फाइनेंशियल क्रेडिटर्स और ऑपरेशनल क्रेडिटर्स के बीच बराबर बांटने का निर्देश दिया था।
न्यायमूर्ति आर.एफ. नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने राष्ट्रीय कंपनी विधि अपीलीय न्यायाधिकरण का आदेश रद्द करते हुए कहा कि न्याय करने वाला न्यायाधिकरण वित्तीय मामलों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। इस आदेश के तहत न्यायाधिकरण ने आर्सेलरमित्तल की बोली की रकम के वितरण में वित्तीय कर्जदाताओं और परिचालन कर्जदाताओं को समान दर्जा प्रदान किया था।
शीर्ष अदालत ने समाधान खोजने के लिए दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता के तहत निर्धारित 330 दिन की समयसीमा में भी ढील देने का निर्देश दिया है। पीठ ने स्पष्ट किया कि वित्तीय देनदारों को प्राथमिकता होती है और कर्जदाताओं की समिति (सीओसी) द्वारा स्वीकृत फैसले में न्याय करने वाला न्यायाधिकरण हस्तक्षेप नही कर सकता। कर्जदाताओं की समिति जो फैसला लेगी, राशि का वितरण उसी के अनुरूप होगा।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद आर्सेलरमित्तल से मिलने वाली 42,000 करोड़ रुपए की रकम कर्जदाताओं की समिति के आदेश के मुताबिक बांटी जाएगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सुरक्षित और असुरक्षित क्रेडिटर्स की तुलना नहीं की जा सकती। इसलिए धन का बंटवारा समिति ही करेगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश से एस्सार स्टील के अधिग्रहण का रास्ता साफ हो गया है। इसके बाद एस्सार स्टील अब आर्सेलरमित्तल की हो जाएगी। यह फैसला बैंकों के पक्ष में आया है। इस फैसले से बैंकों की 90 प्रतिशत तक कर्ज वसूली होगी। एसबीआई ने कहा कि इस फैसले से लेनदारों की स्थिति मजबूत होगी।