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SBI बैसल तीन अनुपालन के लिए जुटाएगा 8,000 करोड़ रुपए, अप्रैल में RBI नीतिगत दरों में कर सकता है कटौती

एसबीआई ने आज कहा कि बैसल तीन पूंजी नियमों को पूरा करने के लिए उसके निदेशक मंडल ने मसाला बांड सहित विभिन्न स्त्रोतों से 8,000 करोड़ रुपए की पूंजी जुटाने को मंजूरी दे दी है।

Edited by: Abhishek Shrivastava
Updated on: December 27, 2017 20:34 IST
SBI- India TV Paisa
SBI

नई दिल्‍ली। देश के सबसे बड़े सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने आज कहा कि बैसल तीन पूंजी नियमों को पूरा करने के लिए उसके निदेशक मंडल ने मसाला बांड सहित विभिन्न स्त्रोतों से 8,000 करोड़ रुपए की पूंजी जुटाने को मंजूरी दे दी है। 

बैंक ने नियामकीय जानकारी में कहा कि केंद्रीय बोर्ड ने आज आयोजित बैठक में अतिरिक्त टियर 1 (एटी 1) पूंजी जुटाने के लिए बैसल तीन नियम के अनुपालन वाले ऋण उत्पादों को जारी कर यह पूंजी जुटाने को मंजूरी दे दी है। इसके जरिये मसाला बांड समेत घरेलू/विदेशी बाजार से 8,000 करोड़ रुपए एकत्र किए जाएंगे। मसाला बांड रुपए आधारित विशेष ऋण साधन होते हैं, जिन्हें केवल पूंजी जुटाने के लिए विदेशी बाजार में जारी किया जाता है। एसबीआई ने कहा कि उसके पास पूंजी जुटाने के लिए मार्च, 2018 तक का समय है। 

अप्रैल में रिजर्व बैंक के नीतिगत दरों में 0.25% की कटौती की संभावना 

भारतीय रिजर्व बैंक अप्रैल में नीतिगत दरों में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है। इससे कर्ज की दरों को कम करने का संकेत मिलेगा। एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है। इसमें कहा गया है कि अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए कर्ज पर ब्याज दरों में कमी जरूरी है। 

बैंक ऑफ अमेरिका मेरिल लिंच (बोफाएमल) की रिपोर्ट में कहा गया है कि मुद्रास्फीति का जोखिम अब अपने चरम को छू चुका है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर, 2017 में 5.2 प्रतिशत पर रहेगी, लेकिन 2018 की पहली छमाही में यह नरम पड़कर 4.5 प्रतिशत पर आ जाएगी। इसके अलावा ऑस्ट्रेलिया के मौसम ब्यूरो ने ला नीना की भविष्यवाणी की है, जिससे अगले साल दक्षिण पश्चिम मानसून मजबूत होगा। इससे मुद्रास्फीतिक दबाव पर अंकुश लगेगा। 

बोफाएमल के शोध नोट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) अप्रैल में नीतिगत दरों में चौथाई प्रतिशत की कटौती करेगी। रिपोर्ट में इस बात पर हैरानी जताई गई कि एमपीसी ने छह दिसंबर को यथास्थिति कायम रखी। यदि उस समय नीतिगत दरों में कटौती होती तो व्यस्त औद्योगिक सीजन से पहले कर्ज की दरें कम हो सकती थीं।

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