नई दिल्ली। कोरोना संकट की वजह से कई लोगों की आय पर दबाव पड़ा है, ऐसे लोगों को अब अपनी कर्ज की किस्ते चुकाने में काफी मुश्किल आ रही है। आर्थिक दबाव में फंसे ऐसे लोगों की राहत के लिए बैंक बांटे गए कर्ज की शर्तों में कुछ बदलाव कर रहे हैं, यानि उन्हें रिस्ट्रक्चर कर रहे हैं जिससे उन्हें कर्ज वापस करने में आसानी हो, जानिए अगर आपने एसबीआई से कर्ज लिया है तो जानिए आपके पास क्या विकल्प हैं।
कौन-कौन होंगे योजना के लिए योग्य-
इनमें से किसी भी एक शर्त को पूरा करने वाले लोन की रिस्ट्रक्चरिंग के योग्य होंगे।
- अगर आपका अगस्त 2020 में वेतन फरवरी 2020 के मुकाबले घट गया हो।
- लॉकडाउन की अवधि के दौरान वेतन में कटौती हुई हो या वेतन रुक गया हो।
- नौकरी छूट गई हो, या फिर काम बंद हो गया हो।
- अपना कारोबार करने वालों की दुकान, यूनिट में काम बंद हो गया हो या कारोबार घट गया हो।
किस तरह के कर्ज पर मिलेगी राहत
- हाउसिंग और उससे जुड़े अन्य कर्ज
- शिक्षा के लिए लिया गया कर्ज
- वाहन के लिए लिया गया कर्ज
- पर्सनल लोन
किस तरह के लोन केस को मिलेगी छूट
- सभी लोन केस को रिस्ट्रक्चरिंग की सुविधा नहीं मिलेगी। सिर्फ वही केस छूट पा सकते हैं जिनके भुगतान पर कोरोना संकट की वजह से असर पड़ा हो।
- एप्लीकेशन देते वक्त लोन स्टैंडर्ड अकाउंट होना चाहिए, और पहली मार्च 2020 तक 30 दिन से ज्यादा डिफॉल्ट नहीं होना चाहिए।
- कोरोना संकट के पहले किस्त न चुकाने वाले लोन केस रिस्ट्रक्चरिंग की राहत नही पा सकेंगे
- वहीं सिर्फ बैंक में 1 मार्च 2020 से पहले दर्ज लोन अकाउंट ही कर्ज रिस्ट्रक्चरिंग का फायदा ले सकते हैं। यानि पहली मार्च के बाद जो कर्ज लिया गया है उन पर राहत नहीं मिलेगी।
कैसे कर सकते हैं आवेदन
- आवेदन स्टेट बैंक की वेबसाइट (www.sbi.co.in) के जरिए किए जा सकते हैं। जहां ओटीपी की मदद से एप्लीकेशन दी जा सकती है। इसके अलावा ग्राहक लोन अकाउंट की बैंक ब्रांच में जरूरी दस्तावेज लेकर आवेदन कर सकता है।
कौन कौन से कागजात करने होंगे जमा
- फरवरी 2020 और अगस्त 2020 की सैलरी स्लिप
- नौकरी छूटने पर कंपनी के द्वारा दिया गया लैटर
- सैलरी या कारोबार से जुड़े बैंक खाते की स्टेटमेंट
कब तक कर सकते हैं आवेदन
- राहत के लिए 24 दिसंबर 2020 तक आवेदन किए जा सकते हैं।
रिस्ट्रक्चरिंग में क्या हैं विकल्प
- अधिकतम 2 साल के लिए किस्त भुगतान में राहत, हालांकि इस अवधि के लिए ब्याज चुकाना होगा
- कर्ज की समय सीमा में बढ़ोतरी या फिर ऐसा ही कोई अन्य कदम जिससे ग्राहक की EMI कम की जा सके।