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हमारा विजन भारत को ब्यूटी और वेलनेस के क्षेत्र में मैन्यूफेक्चरिंग हब बनाना: संकल्प चोपड़ा

एलियस पैरेलल होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और सह-संस्थापक संकल्प चोपड़ा ने भविष्य की योजनाओं और चुनौतियों को लेकर चर्चा की। उन्होनें बताया कि एपीएचएल बनाने के पीछे हमारा विजन भारत को ब्यूटी और वेलनेस के क्षेत्र में ट्रेंडसेटर और वैश्विक मैन्यूफेक्चरिंग हब बनाना है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Updated on: December 25, 2019 0:43 IST
Sankalp Chopra Aelius Parallel Holding Private Limited- India TV Paisa

Sankalp Chopra, CEO & Co- Founder of Aelius Parallel Holding Private Limited

एलियस पैरेलल होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ और सह-संस्थापक संकल्प चोपड़ा ने भविष्य की योजनाओं और चुनौतियों को लेकर चर्चा की। उन्होनें बताया कि एपीएचएल बनाने के पीछे हमारा विजन भारत को ब्यूटी और वेलनेस के क्षेत्र में ट्रेंडसेटर और वैश्विक मैन्यूफेक्चरिंग हब बनाना है। उन्होनें स्किनकेयर/हेयरकेयर प्रोडक्ट्स को इको-फ्रेंडली बनाने पर भी अपनी राय बताई। उन्होनें कहा कि पश्चिमी देशों के मुकाबले भारतीय मैन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री को अब भी प्रोडक्ट की पूरी लाइफसाइकिल को सस्टेनेबल बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।
 
एलियस पैरेलल होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड के साथ आपके शुरुआती दिन कैसे रहे?
 
हमारे स्किनकेयर ब्रांड सीसोल कॉस्मेटिक्स की सफलता के बाद ही हमने हाल ही में एपीएचएल की स्थापना की है। एपीएचएल बनाने के पीछे हमारा विजन भारत को ब्यूटी और वेलनेस के क्षेत्र में ट्रेंडसेटर और वैश्विक मैन्यूफेक्चरिंग हब बनाना है। किसी भी नए उद्यम की तरह शुरुआत में हमें दिक्कतों का सामना करना पड़ा, लेकिन यह तो होता ही है। लर्निंग स्टेज में यह सब साथ आते हैं। एपीएचएल ने हमें फुल-स्केल मैन्यूफेक्चरिंग यूनिट में तब्दील किया। पहला प्राइवेट लेबल अनुबंध करने और हासिल करने हमें एक वर्ष से अधिक समय लग गया।
 
हाल के वर्षों में स्किनकेयर/हेयरकेयर प्रोडक्ट्स को पर्यावरण-अनुकूल (इको-फ्रेंडली) बनाने की मांग उठी है। इंडस्ट्री इस तरह के मुद्दों का सामना कैसे कर रही है?
 
मेरा मानना है कि नए युग के ग्राहक अब अधिक जागरूक हैं और कुछ खरीदने का निर्णय लेने का महत्वपूर्ण कारक प्रोडक्ट की लाइफसाइकल का सस्टेनेबल होना है। इंडस्ट्री ने इस बदली हुई मांग पर अच्छी प्रतिक्रिया दी है और सस्टेनेबल पैकेजिंग, त्वचा और पर्यावरण के अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल बढ़ाया है, सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल बंद किया है लेकिन इस तरह के प्रोडक्ट्स अपेक्षाकृत महंगे होते हैं और ज्यादा लोगों तक नहीं पहुंच पाते। इंडस्ट्री के सामने यह एक बड़ी चुनौती है। इससे उत्पादन लागत बढ़ी है। पश्चिमी देशों के मुकाबले भारतीय मैन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री को अब भी प्रोडक्ट की पूरी लाइफसाइकिल को सस्टेनेबल बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हमारे इन-हाउस ब्रांड सीसोल और केरासोल ने वास्तव में इनोवेटिव और सस्टेनेबल प्रोडक्ट लाइफसाइकिल की ओर चलना शुरू कर दिया है, जो हानिकारक रसायनों से पूरी तरह से मुक्त हैं। हमने यह सीख लिया है और हम चाहते हैं कि अपने लेबल को नई कंपनियों और मौजूदा कंपनियों के साथ साझा किया जाए, साथ ही एपीएचएल के माध्यम से भी बिजनेस किया जाए।  
 
स्किनकेयर/हेयरकेयर क्षेत्र में अन्य देशों की तुलना में भारतीय बाजार कैसे बदल रहा है?
 
2017-18 तक 803.7 बिलियन रुपए के अनुमानित मूल्य (लगभग 12 बिलियन डॉलर) के बाजार के साथ भारत में ब्यूटी और वेलनेस मार्केट तेजी से बढ़ रहा है। हालात बदल रहे हैं और घरेलू इम्पोर्टर्स के साथ-साथ मैन्यूफेक्चरिंग में लगे लोगों को भी पता चल गया है कि उपभोक्ता न केवल मूल्य के आधार पर बल्कि प्रोडक्ट के जैविक या प्राकृतिक होने के दावे पर भी किसी प्रोडक्ट को चुनता है। इसके लिए वह जेब से अतिरिक्त खर्च करने को भी तैयार है। भारत में बालों की देखभाल और फेशियल केयर के लिए शुरू किए गए नए प्रोडक्ट्स को लेकर उनके बॉटनिकल / हर्बल होने का दावा किया जाता है। फास्ट-मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी) सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था में चौथा सबसे बड़ा सेक्टर है, जबकि भारत में घरेलू और पर्सनल केयर के प्रोडक्ट्स की बिक्री की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। वास्तव में  देश के कॉस्मेटिक सेक्टर विकास की संभावनाओं वाले बाजारों में से एक के रूप में उभरा है। नए प्रोजक्ट्स लॉन्च हो रहे हैं और इससे स्पष्ट तौर पर लगता है कि भविष्य में भी यह सेक्टर सकारात्मक रफ्तार रखेगा और निश्चित तौर पर इसका इंडस्ट्री के विकास में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। नए अध्ययन के अनुसार, भारतीय कॉस्मेटिक्स मार्केट ने प्रभावी बिक्री दर्ज की है, और बढ़ती क्रय शक्ति और फैशन के प्रति बढ़ती जागरुकता के साथ इंडस्ट्री को अनुमान है कि यह सेग्मेंट 17% की वार्षिक वृद्धि दर को बनाए रखेगा। उपभोक्ता व्यवहार के विश्लेषण के आधार पर यह देखा गया है कि उपभोक्ता तेजी से ‘प्राकृतिक’ और ‘हर्बल’ कॉस्मेटिक प्रोडक्ट्स को चुन रहे हैं क्योंकि वे बायो-एक्टिव सामग्री से बने होते हैं और मानव त्वचा के लिए सुरक्षित रहते हैं। इसके अलावा यह देखा गया है कि महिलाएं अब खुद अपने पैरों पर खड़ी है और कमा रही हैं। इस वजह से वे कॉस्मेटिक्स और खुद के सजने-संवरने पर अच्छा-खासा पैसा खर्च कर रही हैं। 
 
एक कॉस्मेटिक उद्यमी होने के नाते आप इस उद्योग के विकास के लिए क्या सुधार सुझाते हैं?
 
भारतीय कॉस्मेटिक्स और स्किनकेयर मैन्यूफेक्चरिंग इंडस्ट्री को जीएमपी-आधारित मैन्यूफेक्चरिंग परंपरा की ओर ले जाने के लिए और सस्टेनेबल प्रोडक्ट लाइफसाइकिल विकसित करने की दिशा में निवेश करने की आवश्यकता है:
 
पर्यावरण के अनुकूल प्रोडक्ट पैकेजिंग का उपयोग  
● त्वचा के अनुकूल सामग्री का उपयोग  
● जीएमपी प्रैक्टिसेस का पालन
● जीरो वेस्ट मैन्यूफेक्चरिंग प्रणाली को अपनाएं
● कचरे के दोबारा इस्तेमाल पर निवेश
 
दूसरी ओर सभी प्रोडक्ट्स में पालन सुनिश्चित करते हुए नियामक अधिकारियों को नीति-नियम तय करने चाहिए। इसकी सख्त आवश्यकता है। राज्य के एफडीए अधिकारी भी इस संबंध में और अधिक सक्रिय हो गए हैं, और "रेग्युलेशन बाय एजुकेशन नॉट स्ट्रैंगुलेशन" पर काम कर रहे हैं। इसके लिए व्यापारी समुदाय में भी बड़े पैमाने पर जागरुकता आवश्यक है। कई लोगों को जानकारी ही नहीं है या वे बुनियादी ढांचे में निवेश को तैयार ही नहीं हैं। यदि भारतीय इंडस्ट्री को आज के अनुसार खुद को ढालना है तो भारत को कॉस्मेटिक्स और स्किनकेयर में ग्लोबल सोर्सिंग हब बनने की क्षमता विकसित करनी होगी। 
 
एपीएचएल के लिए आपकी भविष्य की क्या योजनाएं हैं?
 
हमने हाल ही में अपना दूसरा निजी लेबल कॉन्ट्रेक्ट हासिल कर लिया है। हमारा शुरुआती फोकस घरेलू कंपनियों के साथ साझेदारी करना है जो किफायती सस्टेनेबल स्किनकेयर / हेयरकेयर प्रोडक्ट्स की तलाश में हैं जो या तो निजी लेबल वाले या सफेद लेबल वाले। भारत में पीएल / डब्ल्यूएल सेक्शन में बड़े ईकॉमर्स प्लेयर्स की भागीदारी बढ़ रही है क्योंकि उन्हें पीएल प्रोडक्ट्स पर 60% से ज्यादा मार्जिन मिलती है और सिर्फ दूसरे ब्रांड्स बेचने तक सीमित नहीं रहते। हम यहां सक्रिय भागीदारी चाहती हैं। मिडिल ईस्ट का बाजार भी हमारे लिए महत्वपूर्ण फोकस एरिया है क्योंकि वहां भी ब्यूटी के क्षेत्र में काफी कुछ हो रहा है। वहां भी सस्टेनेबल लाइफसाइकिल वाले प्रोडक्ट्स के प्रति रुझान बढ़ा है। 
 
स्किनकेयर उद्योग अक्सर रंगों को लेकर पक्षपात पर आलोचना से घिरता है। इसमें आपको क्या सोचना है?
 
हां, उपभोक्ता को लुभाने के लिए प्रोडक्ट्स में एस्पिरेशनल वैल्यू जोड़ी गई है और इस रणनीति का उपयोग विभिन्न ब्रांड्स ने किया है। मेरा मानना है कि इसका मुख्य कारण यह है कि हमारे समाज में जो बिलिफ सिस्टम विकसित हुआ है, वह ऐसा ही है। आज की पीढ़ी का मंत्र यह है कि हम जो हैं, जैसे हैं, वैसे ही ठीक हैं। हम यह मानते हैं कि हर एक खूबसूरत है। मेकअप सिर्फ खूबसूरती बढ़ाने के लिए होता है। “हर सफर अनोखा होता है। हर चेहरा एक अलग कहानी कहता है। हर लुक अपने आप में अनूठा होता है। मेकअप या स्किनकेयर अलग दिखने की बात नहीं है, यह आपके बारे में बताता है। हम सभी अपने-अपने स्तर पर सुंदर हैं और हमें उस तस्वीर में रंग भरने के लिए पेंटब्रश स्ट्रोक की जरूरत है।” 
 

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