नई दिल्ली। खनन कंपनियों ने खनन कानून के कुछ प्रावधानों को हटाने का विरोध करते हुए कहा है कि इससे देश के खनिज क्षेत्र को लेकर निवेशकों का भरोसा डगमगाएगा और मामले अदालतों में पहुंचेंगे। सरकार ने 500 ब्लॉकों की नीलामी का रास्ता साफ करने के लिए इन प्रावधानों को हटाया है। खनन कंपनियों के संगठन फेडरेशन ऑफ इंडियन मिनलर इंडस्ट्रीज (फिमी) के महासचिव आर के शर्मा ने कहा, ‘‘यदि खनन कानून की धारा 10ए(2)(बी) को हटाया नहीं जाता, तो इन 500 खानों से अतिरिक्त रोजगार के अवसर पैदा होते।’’ शर्मा ने कहा कि मोटे अनुमान के अनुसार शुरुआती चरण में यदि प्रत्येक खान में 100 कर्मचारियों को लिया जाए, तो इन 500 खानों से 50,000 प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे। खनन क्षेत्र में प्रत्यक्ष से अप्रत्क्ष रोजगार का अनुपात 1:10 का है। ऐसे में 50,000 प्रत्यक्ष के साथ पांच लाख अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे। धारा 10ए(2)(बी) के तहत खनिज ब्लाकों के लिए टोही परमिट (आरपी) या संभाव्य लाइसेंस (पीएल) जारी किए जाते हैं लेकिन खनन पट्टा नहीं दिया जाता।
शर्मा ने कहा कि धारा 10ए(2)(बी) को हटाने से घरेलू के साथ अंतरराष्ट्रीय निवेशकों को भी देश की खनिज नीति में निरंतरता को लेकर गलत संकेत जाएगा। फिमी ने कहा कि यह दावा किया गया है कि धारा 10ए(2)(बी) को हटाना एक बड़ा सुधार है और इससे 500 से अधिक खनिज ब्लॉक नीलामी के लिए उपलब्ध होंगे। सरकार ने 2015 में खान एवं खनिज (विकास एवं नियमन) कानून, 1957 को संशोधित करते समय यह धारा लागू की थी और टोही परमिट /संभाव्य लाइसेंस धारकों के योगदान को सराहा था। फिमी ने कहा कि यह धारा रियायतियों को भंडार के खनन का अधिकार देती और उनके हितों का संरक्षण करती है। शर्मा ने कहा, ‘‘सरकार द्वारा धारा 10ए(2)(बी) को हटाने और इन ब्लॉकों को नीलामी के लिए पेश करना प्राकृतिक न्याय के खिलाफ है। इससे घरेलू खनन क्षेत्र की वृद्धि को झटका लगेगा और साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि प्रभावित होगी।’’ सरकार कंपनियों को तीन तरह की खनिज रियायतें- टोही परमिट, संभाव्य लाइसेंस और खनन पट्टा जारी करती है।