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राशन की दुकान पर दो, तीन रुपए किलो बिकने वाले गेहूं की वास्‍तविक लागत 24 रुपए और चावल की 32 रुपए किलो

राशन के जरिए दो रुपए किलो बिकने वाले गेहूं और तीन रुपए किलो बिकने वाले चावल की आर्थिक लागत पिछले पांच साल के दौरान क्रमश: 26 फीसदी और लगभग 25 फीसदी बढ़ी है।

Manish Mishra
Published on: May 22, 2017 13:06 IST
राशन की दुकान पर दो, तीन रुपए किलो बिकने वाले गेहूं की वास्‍तविक लागत 24 रुपए और चावल की 32 रुपए किलो- India TV Paisa
राशन की दुकान पर दो, तीन रुपए किलो बिकने वाले गेहूं की वास्‍तविक लागत 24 रुपए और चावल की 32 रुपए किलो

नई दिल्ली लागत में कटौती की सरकारी एजेंसियों की कोशिशों के बावजूद राशन के जरिए दो रुपए किलो बिकने वाले गेहूं और तीन रुपए किलो बिकने वाले चावल की आर्थिक लागत पिछले पांच साल के दौरान क्रमश: 26 फीसदी और लगभग 25 फीसदी वृद्धि के साथ 24 रुपए और 32 रुपए प्रति किलो तक पहुंच गई है।

भारतीय खाद्य निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि,

2017-18 में गेहूं की आर्थिक लागत 2408.67 रुपए प्रति क्विंटल (24.09 रुपए किलो) जबकि चावल की 3264.23 रुपए क्विंटल (32.6 रुपए प्रति किलो) रहने का अनुमान है। अधिकारी ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य, मजदूरी और अन्य लागतें बढ़ने से आर्थिक लागत बढ़ी है।

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वर्ष 2013-14 में गेहूं की प्रति क्विंटल लागत जहां 1908.32 रुपए यानि 19 रुपए किलो से कुछ अधिक थी, वहीं 2017-18 तक यह बढ़कर 2408.67 रुपए क्विंटल यानि 24.09 रुपए प्रति किलो हो गई। वहीं चावल की लागत 2013-14 में 2615.51 रुपए प्रति क्विंटल 26.15 रुपए किलो से बढ़कर 2017-18 में 3264.23 रुपए क्विंटल यानि 32.6 रुपए प्रति किलो हो गई। इस लिहाज से गेहूं की खरीद और उसके रख-रखाव पर आने वाली लागत जहां प्रति क्विंटल 26.22 फीसदी बढ़ी वहीं चावल की लागत में इस दौरान 24.80 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।

किसानों से अनाज की खरीद करने से लेकर उसे बोरियों में भरकर गोदामों तक पहुंचाने और उसका रख-रखाव करने वाले सार्वजनिक उपक्रम भारतीय खाद्य निगम (FCI) को इस समय गेहूं पर 24 रुपए और चावल पर 32 रुपए प्रति किलो की लागत पड़ रही है जबकि राशन में इन अनाज को क्रमश: 2 रुपए, 3 रुपए प्रति किलो पर उपलब्ध कराया जाता है। आर्थिक लागत और बिक्री मूल्य में अंतर की भरपाई सरकार सब्सिडी के जरिए करती है।

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यह पूछे जाने पर कि लागत में कमी के लिए क्या कुछ कदम उठाये गये हैं, FCI के अधिकारी ने कहा, हमने कार्यबल को युक्तिसंगत बनाकर तथा कुछ अन्य अनावश्यक खर्चों को कम कर पिछले कुछ साल में 800 करोड़ रुपए की बचत की है। उन्होंने कहा कि एमएसपी, ब्याज और कर्मचारियों के वेतन आदि पर होने वाला खर्चा ऐसा है जहां हमारा कोई नियंत्रण नहीं है। हां, प्रशासनिक लागत है जहां कुछ किया जा सकता है जिसे हमने कुछ हद तक युक्तिसंगत बनाया है।

उल्लेखनीय है कि फसल वर्ष 2012-13 में धान (सामान्य) का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1250 रुपए प्रति क्विंटल था जो 2016-17 में बढ़कर 1,470 रुपए हो गया। इसी प्रकार, गेहूं का एमएसपी इस दौरान 1,350 रुपए से बढ़कर 1,625 रुपए प्रति क्विंटल हो गया।

अधिकारी ने कहा, हमने अनुबंध पर काम करने वाले कर्मचारियों के मामले में चीजों को युक्तिसंगत बनाया है। लेकिन इसकी भी सीमा है। अगर आप ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों को कम पैसा देंगे, तो फिर गलत काम को बढ़ावा मिलेगा। इसलिए मजदूरी में वृद्धि भी महंगाई के हिसाब से जरूरी है।

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