नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने बुधवार को कहा कि केंद्रीय बैंक प्रत्यक्ष रूप से नोट की छपाई कर सरकार को जरूरी वित्त उपलब्ध करा सकता है लेकिन इसका उपयोग तभी होना चाहिए, जब कोई और उपाय न बचा हो। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में अभी इस तरह की स्थिति नहीं है। सुब्बाराव ने कहा कि कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर और उसकी रोकथाम के लिए राज्यों के स्तर पर लगाए गए ‘लॉकडाउन’ से अर्थव्यवस्था में नरमी आई है। इससे निपटने के लिए सरकार पैसा जुटाने के लिए कोविड बांड लाने के विकल्प पर विचार कर सकती है। यह बजट में निर्धारित कर्ज के अतिरिक्त नहीं बल्कि उसी के अंतर्गत होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आरबीआई सीधे नोट की छपाई कर सकता है, लेकिन यह तभी होना चाहिए जब कोई और उपाय नहीं बचा हो। निश्चित रूप से, ऐसा भी समय होता है जब प्रतिकूल प्रभाव होने के बावजूद अतिरिक्त मुद्रा की छपाई जरूरी होती है। यह स्थिति तब होती है जब सरकार अपने घाटे का वित्त पोषण तार्किक दर पर नहीं कर सकती। सुब्बाराव ने कहा कि बहरहाल, हम अभी वैसी स्थिति में नहीं हैं। देश की अर्थव्यवस्था में मार्च 2021 को समाप्त वित्त वर्ष में 7.3 प्रतिशत की गिरावट आई जो विभिन्न अनुमानों से कम है। सरकार ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए राजकोषीय घाटा 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। इसे 2025-26 तक कम कर 4.5 प्रतिशत पर लाने का लक्ष्य रखा गया है।
रिजर्व बैंक ने महामारी की दूसरी लहर के कारण उत्पन्न अनिश्चितता को देखते हुए चालू वित्त वर्ष के लिए देश के आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को 10.5 प्रतिशत से कम कर 9.5 प्रतिशत कर दिया है। वहीं विश्व बैंक ने मंगलवार को 2021 में आर्थिक वृद्धि दर 8.3 प्रतिशत रहने की संभावना जताई है। सुब्बाराव के अनुसार जब लोग कहते हैं कि आरबीआई को सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए नोट छापना चाहिए, तो उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता कि केंद्रीय बैंक घाटे को पूरा करने के लिए अब भी मुद्रा की छपाई कर रहा है, लेकिन यह अप्रत्यक्ष रूप से हो रहा है। उन्होंने कहा कि उदाहरण के लिए जब रिजर्व बैंक अपने खुले बाजार संचालन (ओएमओ) के तहत बांड खरीदता है या अपने विदेशी मुद्रा संचालन के तहत डॉलर खरीदता है, तो वह उन खरीद के भुगतान के लिए मुद्रा की छपाई कर रहा है और यह पैसा अप्रत्यक्ष रूप से सरकार के कर्ज वित्त पोषण के लिए जाता है।
सुब्बाराव ने कहा कि हालांकि इसमें महत्वपूर्ण अंतर यह है कि जब आरबीआई अपने नकदी व्यवस्था के हिस्से के रूप में नोट छापता है, तो वह खुद चालक की सीट पर होता और यह तय करता है कि कितने नोट छापने हैं तथा उसे कैसे आगे बढ़ाना है। उन्होंने कहा कि इसके विपरीत अतिरिक्त मुद्रा छपाई को सरकार के राजकोषीय घाटे के वित्तपोषण के एक तरीके के रूप में देखा जाता है। इसमें छापे जाने वाली राशि की मात्रा और समय आरबीआई की मौद्रिक नीति के बजाये सरकार की उधार आवश्यकता से तय होता है।
आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने कहा कि इस स्थिति को आरबीआई का मुद्रा आपूर्ति पर नियंत्रण नहीं रहने के तौर पर भी देखा जाता है। इससे आरबीआई और सरकार दोनों की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचता है। साथ ही इसका प्रतिकूल वृहत आर्थिक प्रभाव होता है। रिजर्व बेंक के राजकोषीय घाटे के मौद्रीकरण से तात्पर्य है कि केंद्रीय बैंक सरकार के लिए उसके राजकोषीय घाटे की भरपाई के तहत आपात व्यय के लिए मुद्रा की छपाई करता है। यह पूछे जाने पर कि क्या कोविड बांड एक विकल्प है, जिसके जरिये सरकार कुछ उधार लेने पर विचार कर सकती है, सुब्बाराव ने कहा कि यह कुछ अच्छा विकल्प है, जिसपर विचार किया जा सकता है। लेकिन यह बजट में निर्धारित उधार के अलावा नहीं, बल्कि उसके एक हिस्से के रूप में होना चाहिए।
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