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जल्‍द ब्‍याज दरें होंगी और कम, बैंकों के लिए बेस रेट तय करने का नया फॉमूर्ला एक अप्रैल से होगा लागू

नए साल में ब्‍याज दरें और कम होंगी। आरबीआई ने बेस रेट तय करने के लिए नया फॉर्मूला बैंकों को दिया है।

Abhishek Shrivastava
Updated : December 19, 2015 12:20 IST
जल्‍द ब्‍याज दरें होंगी और कम, बैंकों के लिए बेस रेट तय करने का नया फॉमूर्ला एक अप्रैल से होगा लागू
जल्‍द ब्‍याज दरें होंगी और कम, बैंकों के लिए बेस रेट तय करने का नया फॉमूर्ला एक अप्रैल से होगा लागू

नई दिल्‍ली। नए साल में ब्‍याज दरें और कम होंगी। बेस रेट तय करने के लिए नया फॉर्मूला जारी कर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने बैंकों को साफ संकेत दिया है कि बैंक अब आम जनता के साथ ज्‍यादा लुका-छिपी का खेल नहीं खेल सकते हैं। आरबीआई चाहता है कि समय-समय पर आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में की जाने वाली कमी का फायदा बैंक तुरंत और प्रभावी ढंग से अंतिम उपभोक्‍ता तक पहुंचाएं, जो कि अभी तक नहीं हो रहा है।

आरबीआई ने नई गाइडलाइन जारी कर बेस रेट तय करने का नया फॉर्मूला जारी किया है। इसके तहत अब रिजर्व बैंक की ओर से रेपो रेट में कटौती करने के बाद तुरंत बैंकों को अपने कर्ज सस्ते करने होंगे। बेस रेट का नया फॉर्मूला एक अप्रैल 2016 से लागू होगा। अभी बैंक ऐसा करने में एक से दो महीने का समय लेते थे। साथ ही कई बार ऊंची लागत की दलील देकर कर्ज में कटौती भी नहीं करते थे। नए फॉर्मूले का सबसे ज्यादा फायदा नए कर्ज लेने वाले ग्राहकों को होगा। हालांकि इसकी वजह से डिपॉजिट रेट भी तुरंत कमी आएगी। रिजर्व बैंक के इस कदम का मकसद बैंकों के बेस रेट को रेपो रेट से लिंक करना है, जिससे रेपो रेट में कमी का पूरा फायदा ग्राहकों को मिल सके। बेस रेट तय करने के नए फॉर्मूले का नाम मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (एमसीएलआर) है। यह फॉर्मूला फंड की मार्जिनल कॉस्ट पर आधारित है। इससे जहां कस्टमर्स को कम रेट का फायदा मिलेगा, वहीं बैंकों द्वारा पहले से ब्याज दर तय करने की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी।

आरबीआई ने इस साल अपनी नीतिगत दरों में अब तक 125 आधार अंकों की कटौती की है लेकिन बैंकों ने इसकी तुलना में केवल 60-70 आधार अंकों की ही कटौती की है। बेस रेट सिस्‍टम जुलाई 2010 में पेश किया गया था जिसे अब बेंचमार्क प्राइम लेंडिंग रेट (बीपीएलआर) से बदल दिया गया है। इससे पहले बैंक अपने 70 फीसदी लोन बीपीएलआर से कम पर दे रहे थे, जो इसकी प्रसांगिता पर सवाल खड़ा कर रहे थे।

बेस रेट व्‍यवस्‍था के तहत बैंकों को बेस रेट से कम दर पर लोन देने की अनुमति नहीं थी। बावजूद इसके बैंक आरबीआई की नीतिगत दरों में कटौती का पूरा फायदा ग्राहकों तक नहीं पहुंचा रहे थे और उन्‍होंने इसके लिए नया रास्‍ता निकाला था। इसका प्रमुख कारण था कि बैंक बेस रेट तय करने के लिए अपने एवरेज कॉस्‍ट ऑफ फंड का इस्‍तेमाल कर रहे थे। अलग-अलग बैंक बेस रेट की गणना करने के लिए अलग-अलग डिपोजिट का उपयोग कर रहे थे।

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