नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि सरकार अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा कम कर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.5 प्रतिशत पर लाने में कामयाब होगी और इसको लेकर कोई संदेह नहीं है। दास ने कहा कि सरकार घाटे को लेकर राजकोषीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) समिति द्वारा तय सीमा के भीतर है। मोदी सरकार लगातार तीसरे साल राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी। चालू वित्त वर्ष में इसके बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 3.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है, जबकि पूर्व में इसके 3.3 प्रतिशत रहने की संभावना जताई गई थी।
अगले वित्त वर्ष के लिए राजकोषीय घाटा 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है। राजकोषीय घाटा सरकार के आय और व्यय के अंतर को बताता है। इसका मतलब है कि सरकार के पास जो साधन हैं, वह उससे अधिक खर्च कर रही है। दास ने कहा कि सरकार एफआरबीएम समिति की सिफारिशों के दायरे में है। इसीलिए राजकोषीय घाटा लक्ष्य से केवल 0.5 प्रतिशत ही अधिक हुआ। सरकार इस पर कायम है और अगले साल राजकोषीय घाटे का बड़ा हिस्सा लघु बचत से आएगा।
एन के सिंह की अध्यक्षता वाली एफआरबीएम समिति ने 2020-21 तक राजकोषीय घाटे को कम कर 2.8 प्रतिशत और 2022-23 तक 2.5 प्रतिशत पर लाने की सिफारिश की है। समिति ने छूट उपबंध का भी सुझाव दिया था। इसके तहत राष्ट्रीय सुरक्षा, युद्ध की स्थिति, राष्ट्रीय आपदा और कृषि के गंभीर रूप से प्रभावित होने के कारण उत्पादन तथा आय पर असर पड़ने की स्थिति में इस प्रावधान का उपयोग किया जा सकता है। इसके तहत राजकोषीय घाटा लक्ष्य से 0.
5 प्रतिशत तक अधिक रह सकता है।
दास ने कहा कि अगले साल का राजकोषीय घाटे का लक्ष्य हासिल किया जाएगा और इसमें संदेह का कोई कारण नहीं है। एक सवाल के जवाब में आरबीआई गवर्नर ने कहा कि 2020-21 के बजट में कुछ बांड को बिना किसी सीमा के प्रवासी भारतीयों के निवेश के लिए खोला जाएगा।
उन्होंने कहा कि इसके अलावा कंपनी बांड की सीमा 9 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत की गई अत: विदेशों से धन भारत आने जा रहा है। भारतीय कंपनियां भी विदेशी बाजारों (ईसीबी) के जरिये विदेशी स्रोत से काफी धन जुटा रही हैं। दास ने कहा कि कर्ज प्रबंधक के रूप में आरबीआई सुनिश्चित करेगा कि जो उधारी कार्यक्रम है, उसमें कोई बाधा उत्पन्न नहीं हो।