नई दिल्ली। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप और पूरे देश में 21 दिन के लागू लॉकडाउन के बीच रिजर्व बैंक ने शुक्रवार को अर्थव्यवस्था में नकदी प्रवाह बढ़ाने और कर्ज सस्ता करने के लिये रेपो दर, नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) रिवर्स रेपो दर में बड़ी कटौती की घोषणा की है। केन्द्रीय बैंक ने शुक्रवार को मौद्रिक नीति की तीन दिवसीय समिति की बैठक के बाद शुक्रवार को रेपो दर में 0.75 प्रतिशत की कटौती कर दी। इस कटौती के बाद रेपो दर 4.40 प्रतिशत पर आ गई। इसके साथ ही रिवर्स रेपो दर में भी 0.90 प्रतिशत की कटौती कर इसे 4 प्रतिशत पर ला दिया।
रिजर्व बैंक ने बैंकों के नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी एक प्रतिशत की कमी की है जो कि घटकर तीन प्रतिशत रह गई। रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि सीआरआर में कटौती, रेपो दर आधारित नीलामी समेत अन्य कदम से बैंकों के पास कर्ज देने के लिए 3.74 लाख करोड़ रुपये के बराबर अतिरिक्त नकद धन उपलब्ध होगा। कोरोनावायरस संकट के बीच आरबीआई गवर्नर ने कहा कि टर्म लोन की ईएमआई चुकाने में 3 महीने की छूट मिलेगी। कोविड-19 की वजह से बैंकों के कर्ज भुगतान में डिफॉल्ट की आशंका बढ़ गई थी। लेकिन, आरबीआई साफ कहा है कि 3 महीने किश्त नहीं आने पर डिफॉल्ट नहीं माना जाएगा। कोई रेटिंग एजेंसी बैंकों की रेटिंग नहीं घटाएगी। दास ने कहा है कि इससे कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में मदद मिलेगी। आप भी जानिए आखिर रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर क्या होता है और इसका हम पर क्या असर पड़ता है।
रेपो रेट (Repo Rate)
रेपो रेट को आसान भाषा में ऐसे समझा जा सकता है। बैंक हमें कर्ज देते हैं और उस कर्ज पर हमें ब्याज देना पड़ता है। ठीक वैसे ही बैंकों को भी अपने रोजमर्रा के कामकाज के लिए भारी-भरकम रकम की जरूरत पड़ जाती है और वे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) से कर्ज लेते हैं। इस ऋण पर रिजर्व बैंक जिस दर से उनसे ब्याज वसूल करता है, उसे रेपो रेट कहते हैं।
रेपो रेट से आम आदमी पर क्या पड़ता है प्रभाव
जब बैंकों को कम ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध होगा यानी रेपो रेट कम होगा तो वो भी अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। और यदि रिजर्व बैंक रेपो रेट बढ़ाएगा तो बैंकों के लिए कर्ज लेना महंगा हो जाएगा और वे अपने ग्राहकों के लिए कर्ज महंगा कर देंगे।
रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
यह रेपो रेट से उलट होता है। बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद बड़ी रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को रिजर्व बैंक में रख देते हैं। इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।
रिवर्स रेपो रेट का आम आदमी पर ऐसे पड़ता है प्रभाव
जब भी बाजारों में बहुत ज्यादा नकदी दिखाई देती है, आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें। इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में छोड़ने के लिए कम रकम रह जाएगी।
जानिए क्या होता है नकद आरक्षित अनुपात (Cash Reserve Ratio/CRR)
बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है, जिसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) कहा जाता है। यह नियम इसलिए बनाए गए हैं, ताकि यदि किसी भी वक्त किसी भी बैंक में बहुत बड़ी तादाद में जमाकर्ताओं को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसा चुकाने से मना न कर सके।
आम आदमी पर सीआरआर का ऐसे पड़ता है प्रभाव
अगर सीआरआर बढ़ता है तो बैंकों को ज्यादा बड़ा हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना होगा और उनके पास कर्ज के रूप में देने के लिए कम रकम रह जाएगी। यानी आम आदमी को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास पैसा कम होगा। अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है।
क्या है एसएलआर (Statutory liquidity ratio/वैधानिक तरलता अनुपात)
जिस रेट पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।