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सेंट्रल बैंकों के पास हमेशा कोई कारगर नुस्खा नहीं हो सकता: राजन

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि केंद्रीय बैंकों से जरूरत से ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए। कोई न कोई नुस्खा बचा रहता है।

Dharmender Chaudhary
Published : July 04, 2016 8:54 IST
सेंट्रल बैंकों के पास हमेशा कोई कारगर नुस्खा नहीं हो सकता: राजन
सेंट्रल बैंकों के पास हमेशा कोई कारगर नुस्खा नहीं हो सकता: राजन

बासेल। भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि केंद्रीय बैंकों से जरूरत से ज्यादा उम्मीद नहीं रखनी चाहिए और न ही उन्हें हमेशा यह दावा करना चाहिए कि उनके पास हर समस्या से निपटने का कोई न कोई नुस्खा बचा रहता है। इसके साथ ही उन्होंने कहा है कि उभरते बाजारों में परिस्थितियां बहुत कठिन हैं। राजन ने वैश्विक वित्तीय संकट से केंद्रीय बैंकों को मिली सीख पर एक परिचर्चा के दौरान ये बातें कहीं। राजन ने परिचर्चा के दौरान औद्योगिक देशों की इस बात के जमकर खिंचाई की कि वे उभरते बाजारों को परंपरागत मौद्रिक नीति की राह पर बने रहने की सलाह देते हैं लेकिन खुद परंपराओं को हवा में उड़ा चुके हैं।

अंतरराष्ट्रीय निपटान बैंक (बीआईएस) की सालाना आम बैठक में जैकबसन फाउंडेशन व्याख्यान के बाद हुई। यह व्याख्यान 26 जून को जेपी मोर्गन चेज इंटरनेशनल के चेयरमैन जैकब फ्रेंकेल ने दिया था। इसका ब्यौरा अब जारी किया गया। परिचर्चा में बैंक आफ मैक्सिको के गवर्नर अगुस्तुन कार्सटेंस व बैंक आफ फ्रांस के गवर्नर फ्रांस्वा लिवेराय दे गलहाउ ने भी भाग लिया। राजन ने हाल ही में घोषणा कर चुके हैं कि वे रिजर्व बैंक के गवर्नर पद पर दूसरा कार्यकाल नहीं लेंगे। उनका मौजूदा कार्यकाल चार सितंबर को समाप्त होगा। आईएमएफ के पूर्व अर्थशास्त्री राजन को वैश्विक वित्तीय संकट का अनुमान लगाने का श्रेय दिया जाता है। वे बीआईएस की सालाना आम बैठक में भाग लेने यहां आए थे। राजन ने अपनी बात की व्याख्या करते हुए औद्योगिक देशों के मौजूदा हालात को एक नयी स्थिति की संग्या दी।

उन्होंने कहा कि यह स्थिति ऐसी है जहां नीतियां उस तरह काम नहीं कर पा रही हैं जिस तरह उनका प्रचार किया गया था। या कि कोई यह भी तर्क दे सकता है कि ऐसी परिस्थितियों में अर्थशास्त्र के सामान्य नियम लागू नहीं होते। इस परिस्थिति के बारे में यह भी कहा जा रहा है कि वह संभ्रात वर्ग जो इन नीतियों को आगे बढा रहा था, उसकी खुद की प्रतिष्ठा खत्म हो चुकी है।

राजन के अनुसार ऐसी सोच बन रही है कि इस वर्ग को असलियत की जानकारी नहीं है इसलिए उस पर विश्वास नहीं किया जा सकता। ऐसा माना जा रहा है कि यहां जुए का खेल चल रहा है यदि कोई बाहर से आकर मेरी पेंशन लेता है और यदि मैं उसे मौका देता हूं तो मुझे आगे चलकर नुकसान होगा। यह उपर के एक प्रतिशत लोगों की सोच है इसलिए आज हालात ज्यादा जटिल हो गए हैं। राजन ने कहा- इस वातावरण में कोई सुसंगत नीति अपनाने की संभावना और अधिक सीमित हो चली है। रिजर्व बैंक गवर्नर ने कहा, इस तरह की सोच से केंद्रीय बैंकों के समक्ष बिलकुल नये तरह का वातावरण पैदा हेाता है। मुझे लगता है कि हम सभी ने इसे थोड़ा बहुत जरूर देखा है। उन्होंने कहा कि हममें में से कई लोगों ने कहा है कि कोई बात समस्या के समाधान का एक हिस्सा हो सकती है पर दूसरों को भी अपने योगदान के लिए आगे आना होगा।

राजन ने कहा, यदि दूसरों को लकवा मार गया और वातावरण में बहुत अधिक बदलाव के कारण वे आगे नहीं आ सकें तो हम कितना करेंगे? शायद जैकब का गुस्सा इसी बात को लेकर है। राजन ने कहा कि उनकी राय में इसमें दो मुद्दे जुड़े हैं। एक मुद्दा केंद्रीय बैंकों को लेकर बहुत ज्यादा भरोसा कि वे कोई न कोई समाधान निकाल लेंगे। दूसरा, जिसके लिए हम खुद जिम्मेदार हैं। वह यह है कि केंद्रीय बैंक समुदाय का दावा कि हम कोई न कोई समाधान निकाल सकते हैं। गवर्नर ने कहा कि हम (केंद्रीय बैंक) कहते हैं,रकिए, हमारे तरकश में अभी और तीर हैं। हम निहत्थे नहीं हुए हैं। हमारे पास कुछ न कुछ नुस्खा हमेशा बचा रहता है। जिसका हमने इस्तेमाल नहीं किया। राजन ने कहा कि यदि हम ऐसा दावा करते हैं तथा और कुछ नहीं हो रहा हो तो लोगों के लिए केवल हमीं एक विकल्प बचते हैं। इस हालात से निकलना वास्तव में बड़ा कठिन काम है।

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