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कमजोर ऋण वृद्धि की वजह ऊंची ब्याज दर नहीं बल्कि बैंकों का फंसा कर्ज: राजन

रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि कमजोर ऋण वृद्धि का कारण ऊंची ब्याज दर नहीं बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर फंसे कर्ज का दबाव होना है।

Abhishek Shrivastava
Published : June 22, 2016 20:56 IST
कमजोर ऋण वृद्धि की वजह ऊंची ब्याज दर नहीं बल्कि बैंकों का फंसा कर्ज: राजन
कमजोर ऋण वृद्धि की वजह ऊंची ब्याज दर नहीं बल्कि बैंकों का फंसा कर्ज: राजन

बेंगलुरु। मौद्रिक नीति की आलोचना करने वालों को जवाब देते हुए रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि कमजोर ऋण वृद्धि का कारण ऊंची ब्याज दर नहीं बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर फंसे कर्ज का दबाव होना है। राजन ने रिजर्व बैंक के अधिशेष कोष का उपयोग सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के लिए करने के सुझाव को भी खारिज कर दिया।

उद्योग मंडल एसोचैम द्वारा आयोजित कार्यक्रम रिजोल्विंग स्ट्रेस इन द बैंकिंग सिस्टम पर अपने संबोधन में रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा, मैं यह दलील दूंगा कि ऋण वृद्धि में नरमी का बड़ा कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर दबाव है न कि उच्च ब्याज दर। साथ ही उन्होंने बैंकों के लिए उद्योग को कर्ज देने की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा, हमें वास्तव में इस बात की जरूरत है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक फिर से उद्योग एवं बुनियादी ढांचे को कर्ज दे अन्यथा ऋण तथा वृद्धि प्रभावित होगी। राजन ने जोर देकर कहा, यह ब्याज दर का स्तर नहीं है जो समस्या है। बल्कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के बही-खाते में जो पहले से ऋण हैं, वे दबाव में हैं और इसीलिए वे उन क्षेत्रों को कर्ज देने को इच्छुक नहीं हैं, जहां उन्होंने पहले से अधिक ऋण दे रखा है।

ऋण वृद्धि 2015-16 में करीब 8.6 फीसदी रही, जो करीब छह दशक का न्यूनतम स्तर है। वहां फंसा कर्ज पिछले वित्त वर्ष में 13 फीसदी को पार कर 8,000 अरब रुपए पहुंच गया।

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गवर्नर ने सुझाव दिया कि अगर बैंकों के बही-खाते दुरुस्‍त होते हैं तो इससे ब्याज दरों में कटौती की गुंजाइश बन सकती है। राजन ने रिजर्व बैंक के अधिशेष कोष का उपयोग सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों को पूंजी उपलब्ध कराने के सुझाव को भी खारिज कर दिया। मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम के इस प्रस्ताव के बारे में उन्होंने कहा कि यह पारदर्शी विचार नहीं है और इससे हितों का टकराव हो सकता है। उन्होंने कहा, आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि रिजर्व बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को पूंजी दे। यह गैर-पारदर्शी तरीका लगता है। इससे बैंक नियामक एक बार फिर से बैंकों के मालिक बनने के काम में आ जाएगा और इससे हितों का टकराव होगा।

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