नई दिल्ली। देश में दलहनों के रिकॉर्ड उत्पादन के कारण वित्त वर्ष 2017-18 में दलहनों-दालों का आयात लगभग दस लाख टन घट गया, जिससे देश को 9,775 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा को बचाने में मदद मिली है। सरकार ने आज यह जानकारी दी है। कृषि मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि वित्त वर्ष 2016-17 में 66 लाख टन के मुकाबले वर्ष 2017-18 में दलहन आयात 10 लाख टन घटकर 56.5 लाख टन रह गया है, जिसके परिणामस्वरूप देश की विदेशी मुद्रा की बचत 9,775 करोड़ रुपए की हो गई है।
अगले महीने समाप्त हो रहे चालू फसल वर्ष 2017-18 में दलहन उत्पादन अब तक के उच्चतम स्तर दो करोड़ 39.5 लाख टन को छू गया और इस प्रकार वर्ष 2016-17 में हासिल किए गए दो करोड़ 31.3 लाख टन के पहले रिकॉर्ड को पीछे छोड़ दिया। अच्छे मॉनसून के साथ-साथ सरकार की ओर से उच्च समर्थन मूल्य के प्रस्ताव किए जाने के कारण दलहन उत्पादन में वृद्धि हुई है।
वर्ष 2016 के मध्य में खुदरा बाजार में दालों की कीमत 200 रुपए प्रति किलोग्राम से अधिक हो जाने के बाद, केंद्र सरकार अपने दलहन उत्पादन को बढ़ावा देने और देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए विभिन्न कदम उठा रही है। भारत अपने 2.4 करोड़ टन की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए हर साल 40 से 60 लाख टन दालों का आयात करता है। भारी उत्पादन के मद्देनजर , सरकार ने दलहनों पर आयात शुल्क लगाया है और दालों की विभिन्न किस्मों पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाया है।
मटर के आयात पर आयात शुल्क 60 प्रतिशत, पीले मटर पर 50 प्रतिशत, मसूर पर 30 प्रतिशत और तुअर पर 10 प्रतिशत तय किया गया है। इसके अलावा, सरकार ने कहा कि उसने प्रति वर्ष 2 लाख टन प्रति वर्ष तुअर दाल और उड़द और मूंग दाल पर तीन लाख टन का मात्रात्मक प्रतिबंध लगाया है। मटर के मामले में, इस साल जून तक तीन महीने के लिए एक लाख टन के आयात करने की अनुमति है।
इसमें 22 नवंबर, 2017 से दालों की सभी किस्मों के निर्यात की अनुमति दी गई है, जिसे पहले अनुमति नहीं दी गई थी। चना के निर्यात के लिए भारत से निर्यात योजना (एमईआईएस) के तहत 7 प्रतिशत के प्रोत्साहन को स्वीकृत दी गई है। दालों के अलावा, मंत्रालय ने खाद्य तेलों और गेहूं के आयात को रोकने के लिए किए गए उपायों का ब्यौरा दिया है। वर्ष 2017-18 के दौरान कृषि और संबद्ध उत्पादों की निर्यात वृद्धि दर बढ़कर 10.5 प्रतिशत हो गई।