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सरकारी बैंकों की समस्या का समाधान विलय नहीं, मैनेजमेंट को ज्यादा अधिकार देने की जरूरत

सरकारी बैंकों के बढ़ते एनपीए की समस्या का समाधान पर एसोचैम ने कहा है कि इसका समाधान विलय नहीं बल्कि बैंक मैमेजमेंट को अधिक स्वतंत्रता देने से होगा।

Dharmender Chaudhary
Updated on: September 21, 2016 18:18 IST

नई दिल्ली। सरकारी बैंकों की कर्ज में फंसी राशि (एनपीए) की गंभीर होती समस्या पर देश के प्रमुख उद्योग मंडल एसोचैम ने कहा है कि इसका समाधान विलय नहीं बल्कि बैंक मैमेजमेंट को कामकाज और निर्णय लेने में अधिक स्वतंत्रता देने से होगा।

एसोचैम के अध्यक्ष सुनील कनोरिया ने उद्योग मंडल की इस संबंध में तैयार रिपोर्ट का अनावरण करते हुए कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय ही समस्या का एकमात्र समाधान है यह जरूरी नहीं है बल्कि इन बैंकों के प्रबंधन को सक्षम और पेशेवर बनाए जाने की जरूरत है।

कनोरिया ने कहा, वह विलय के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन इस समय बैंकों की जो स्थिति है उसमें प्राथमिकता बैंकों को मजबूत और खुद बढ़ने देने को मिलनी चाहिए। बैंकों के प्रबंधन को फैसले लेने में अधिक स्वायत्तता मिलनी चाहिए।

सरकारी बैंकों का करीब 5 लाख करोड़ रुपए की राशि एनपीए बन चुकी है। इन बैंकों के समक्ष आज यह समस्या काफी विकराल रूप ले चुकी है। हालांकि, सरकार ने बैंकों की स्थिति में सुधार के लिए अनेक उपाय किए हैं।

कनोरिया ने एक सवाल के जवाब में कहा, हमें देश में सभी तरह के बैंकों की जरूरत है। छोटे, बड़े और मध्यम आकार के बैंक होने चाहिए। केवल बड़े बैंक की समस्या का समाधान नहीं हो सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक प्रबंधन में आज काफी डर है, वह फैसले लेने में उत्साहित नहीं हैं, इस डर को दूर किया जाना चाहिए। तभी बैंक आगे बढ़कर काम कर सकेंगे।

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