लखनऊ। देश में उद्योगों से जुड़ी प्रमुख संस्था एसोचैम ने देश में बड़े इंवेस्टमेंट प्रोजेक्ट को पूरा करने में हो रही सुस्ती पर चिंता जताई है। ऐसाचैम के मुताबिक देश में निवेश तो आ रहा है लेकिन इनसे जुड़े प्रोजेक्ट शुरू नहीं हो रहे हैं। यूपी, बिहार, राजस्थान में परियोजनाओं का हाल बेहद खराब है। सितम्बर 2015 तक देश में करीब 14.70 लाख करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की गयी थी। लेकिन उसमें से सिर्फ 11 . 2 प्रतिशत निवेश ही प्राप्त हो सका है। ऐसोचैम ने रिपोर्ट में कहा है कि यदि सरकार ने रफ्तार बढ़ाने पर फोकस नहीं किया तो मेक इन इंडिया के साथ भारत को दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने का सपना अधूरा रह सकता है।
मेक इन इंडिया की सुस्त रफ्तार
एसोचैम के राष्ट्रीय महासचिव डी. एस. रावत ने कहा कि केन्द्र सरकार ने भारत को दुनिया का प्रमुख निर्माण हब बनाने के लिये मेक इन इंडिया की परिकल्पना पेश की है। लेकिन देश में आने वाले निवेश के परियोजनाओं के तौर पर अमल में आने की मौजूदा धीमी रफ्तार के कारण इस परिकल्पना को लेकर जाहिर की गयी उम्मीदें अपनी चमक खो रही हैं। उन्होंने कहा कि देश में निवेश की घोषणाएं तो हो रही हैं लेकिन वे जमीन पर नहीं उतर रही हैं। इसके अलावा जो निवेश हो चुका है, उससे जुड़ी परियोजनाओं के मुकम्मल होने में लग रही देर के कारण लागत में दिन-ब-दिन बढ़ोत्तरी से निवेशकों का विश्वास और इरादा दोनों ही कमजोर हो रहे हैं।
यूपी, बिहार, राजस्थान बने सबसे बड़े विलेन
रावत ने देश में निवेश परियोजनाओं की मौजूदा स्थिति को दर्शाती एसोचैम की एक ताजा रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि राजस्थान (68 . 4 फीसदी), हरियाणा (67 . 5 फीसदी), बिहार (62 . 8 फीसदी), असम (62 . 4 फीसदी) और उत्तर प्रदेश (61 . 7 फीसदी) में सबसे ज्यादा निवेश परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। उन्होंने बताया कि देश में क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों से गुजर रही 1160 निर्माण परियोजनाओं में से 422 की या तो लागत बढ़ चुकी है, या फिर उनके पूर्ण होने का अनुमानित समय बीत चुका है, अथवा वे इन दोनों ही दिक्कतों का शिकार हैं। ऐसी परियोजनाओं का आकार 8 . 76 लाख करोड़ है। इनमें से 79 परियोजनाएं तो निर्धारित अवधि से 50 या उससे ज्यादा महीनों के विलम्ब से चल रही हैं।