मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक के एक लेख के अनुसार कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि पहली लहर की तुलना में कम रही और ऐसा मुख्य रूप से सरकारों द्वारा बेहतर आपूर्ति प्रबंधन के कारण हुआ। कोविड अवधि के दौरान 22 खाद्य पदार्थों के खुदरा और थोक मूल्यों पर आधारित इस लेख में कहा गया कि मार्च-मई 2020 की पहली राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन अवधि के दौरान मूल्य वृद्धि में औसत रूप से इजाफा हुआ और यह लॉकडाउन हटाए जाने के चरण के दौरान भी बनी रही।
गतिशीलता सूचकांकों द्वारा किये गये मापन के मुताबिक ऐसा मुख्य रूप से उन बाजार केंद्रों के कारण हुआ जिन्हें ज्यादा गंभीर लॉकडाउन का सामना करना पड़ा। इसमें कहा गया, हालांकि कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान, लॉकडाउन की कम कठोर और स्थानीयकृत प्रकृति के साथ-साथ बेहतर आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन को दर्शाते हुए, मूल्य वृद्धि की सीमा अपेक्षाकृत रूप से कम रही। यह लेख रिजर्व बैंक के आर्थिक और नीति अनुसंधान विभाग के जिबिन जोस, विमल किशोर और बिनोद बी भोई ने लिखा है। हालांकि, रिजर्व बैंक ने कहा कि इस लेख में व्यक्त विचार लेखकों के हैं और वे रिजर्व बैंक के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
लेख में कहा गया कि महामारी की पहली लहर में लॉकडाउन अवधि के दौरान मूल्य अंतर में औसतन सात प्रतिशत की वृद्धि हुई, जो लॉकडाउन हटाए जाने के चरण में कुछ कम होने के साथ बनी रही। इसके अलावा मूल्य अंतर में वृद्धि मुख्य रूप से ज्यादा गंभीर लॉकडाउन वाले केंद्रों की वजह से हुई जिससे मूल्य वृद्धि में लॉकडाउन की भूमिका का पता चलता है। इस दौरान दलहन और खाद्य तेलों में तीव्र मूल्य वृद्धि देखी गई जो कि घरेलू स्तर पर मांग- आपूर्ति की असंतुलित स्थिति को बताता है।
वहीं अनाज और दूध के दाम में इस दौरान कोई उल्लेखनीय प्रभाव नहीं दिखाई दिया क्योंकि इनकी आपूर्ति बेहतर है और आपूर्ति श्रृंखला भी जबर्दस्त है। दूसरी लहर के दौरान स्थिति बेहतर रही। स्थानीय स्तर पर लगाये गये लॉकडाउन का सामूहिक सतर पर विभिन्न केन्द्रों में मार्जिन पर उल्लेखनीय प्रभाव नहीं पड़ा। हालांकि, खाद्य तेल और दालों के मार्जिन में कुछ वृद्धि देखी गई। मांग और आपूर्ति में लगातार कमी इसका कारण है। हालांकि, इसका दायरा कम रहा। वहीं अनाज और सब्जियों के मामले में मार्जिन कम हुये जिससे दूसरी लहर के लॉकडाउन के कम सख्त होने की प्रकृति का पता चलता है।