नई दिल्ली। दिल्ली और पंजाब सहित देश के कई राज्यों में बिजली संकट खड़ा हो गया है। इसके प्रमुख दो कारण हैं। पहला इस बार अत्यधिक वर्षा के कारण कोयला आपूर्ति प्रभावित हुई है और दूसरा आयातित कोयला कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने की वजह से आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्र अपनी क्षमता से आधे से भी कम बिजली का उत्पादन कर रहे हैं। इन दो कारणों से बिजली उत्पादन क्षेत्र दोहरे दबाव में है। देश में इस वर्ष कोयला का हालांकि रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है, लेकिन अत्यधिक वर्षा ने कोयला खदानों से बिजली उत्पादन इकाइयों तक ईंधन की आवाजाही को ख़ासा प्रभावित किया है। गुजरात, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और तमिलनाडु समेत कई राज्यों में बिजली उत्पादन पर इसका गहरा असर पड़ा है।
बिजली की मांग में तेज वृद्धि
भारत की अर्थव्यवस्था जानलेवा कोविड-19 की दूसरी लहर के बाद तेजी से रिकवरी मोड में लौटी है। इस वजह से बिजली की मांग में तेज वृद्धि हुई है। पिछले दो महीनों में बिजली उपभोग में 17 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वहीं इस दौरान वैश्विक कोयला कीमत में 40 प्रतिशत का उछाल आया है और भारत का कोयला आयात गिरकर दो साल के निचले स्तर पर पहुंच गया है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला आयातक देश है। कोयला भंडार के मामले में भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश भी है।
कोयला संकट के हैं ये चार कारण
सूत्रों ने बिजली संयंत्रों में कोयला भंडार में तेज गिरावट के लिए चार कारण बताएं हैं- इनमें पहला है अर्थव्यवस्था में सुधार के कारण बिजली की मांग में अप्रत्याशित रूप से अत्यधिक वृद्धि होना। दूसरा कारण है सितंबर के दौरान कोयला खदान वाले क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा के कारण उत्पादन के साथ ही साथ आपूर्ति में बाधा उत्पन्न होना। तीसरा कारण है आयातित कोयले की कीमत रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने के कारण आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बिजली उत्पादन में कमी आना। चौथा और प्रमुख कारण है मानसून की शुरुआत से पहले बिजली संयंत्रों में पर्याप्त कोयला भंडार को न रखना।
43 प्रतिशत घटा बिजली उत्पादन
देश में बिजली की दैनिक खपत 4 अरब यूनिट प्रतिदिन से अधिक हो गई है। इंडोनेशिया कोयला का आयोतित मूल्य मार्च में 60 डॉलर प्रति टन से बढ़कर सितंबर में 160 डॉलर प्रति टन हो गया। इसके परिणामस्वरूप आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बिजली उत्पादन में 43.6 प्रतिशत की कमी आई है। इस वजह से अप्रैल-सितंबर के दौरान घरेलू कोयले की 1.74 करोड़ टन अतिरिक्त मांग पैदा हुई।
ये राज्य हैं सबसे ज्यादा प्रभावित
कोयला संकट के कारण पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, झारखंड, बिहार और आंध्रप्रदेश में भी बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई है। एक तरफ बिजली उत्पादकों और वितरकों ने केवल दो दिन का कोयला बचा होने का दावा करते हुए, जहां बिजली कटौती की चेतावनी दी है, वही कोयला मंत्रालय का कहना है कि देश में पर्याप्त कोयले का भंडार है और माल की लगातार भरपाई की जा रही है। इसके अलावा बिजली उत्पन्न करने के लिए आयातित कोयले का उपयोग करने वाले बिजली संयंत्रों ने कीमतों में उछाल के कारण या तो उत्पादन कम कर दिया है या पूरी तरह से बंद कर दिया है।
टाटा पावर ने बंद किया बिजली संयंत्र
गुजरात को 1850, पंजाब को 475, राजस्थान को 380, महाराष्ट्र को 760 और हरियाणा को 380 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने वाली टाटा पावर ने गुजरात के मुंद्रा में अपने आयातित कोयला आधारित बिजली संयंत्र से उत्पादन बंद कर दिया है। अडानी पावर की मुंद्रा इकाई को भी इसी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है।
कितना है देश में कोयला भंडार
कोयला मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि कोल इंडिया लिमिटेड की खदानों में लगभग चार करोड़ टन और बिजली संयंत्रों में 75 लाख टन का कोयला भंडार मौजूद है। खदानों से बिजली संयंत्रों तक कोयला पहुंचना परेशानी रही है क्योंकि अत्यधिक बारिश के कारण खदानों में पानी भर गया है। लेकिन अब इसे निपटाया जा रहा है और बिजली संयंत्रों को कोयला की आपूर्ति बढ़ रही है।
मुख्यमंत्रियों ने लिखा पीएम को पत्र
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बिजली संकट को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र को एक पत्र लिखा है। उन्होंने पत्र में कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से इस स्थिति पर नजर रख रहे हैं और ऐसी स्थिति न आए इसके लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं। आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस.जगन मोहन रेड्डी ने भी प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि कटाई के अंतिम चरण में अधिक पानी की आवश्यकता होती है और यदि पानी नहीं मिलता, तो खेत सूख जाते हैं और किसानों को नुकसान उठाना पड़ता है।
ओडिशा के उद्योगों ने की अपील
उद्योग संगठन उत्कल चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री लिमिटेड (यूसीसीआई) ने ओडिशा सरकार से राज्य स्थित उद्योगों को कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने का आग्रह किया है। यूसीसीआई का कहना है कि इन उद्योंगों को अपनी इकाइयों चलाने के लिए कोयले के भारी संकट का सामना करना पड़ रहा है। पत्र में कहा गया है कि जहां छोटे और मझोले उद्योगों की परेशानी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है, वहीं इस्पात संयंत्र, एल्युमीनियम स्मेल्टर और अन्य बड़े उद्योग एक ऐसे स्तर पर काम कर रहे हैं, जहां यही स्थिति जारी रही, तो उनका परिचालन लाभप्रद नहीं रह जाएगा।
उद्योग गैसीकरण तकनीक के जरिये कोयले का इस्तेमाल शुरू करे
जिंदल स्टील एंड पावर लि.(जेएसपीएल) के प्रबंध निदेशक वी आर शर्मा ने कहा है कि घरेलू उद्योग को गैसीकरण तकनीक के जरिये कोयले का इस्तेमाल शुरू करना चाहिए। उन्होंने इस पर जोर दिया कि यह प्रक्रिया पर्यावरण के अनुकूल है और इसमें कार्बन उत्सर्जन न्यूनतम है। उन्होंने कहा कि गैसीकरण तकनीक भारत को तेल, गैस, मेथनॉल, अमोनिया, यूरिया और अन्य उत्पादों की कमी को दूर करने में भी मदद करेगी, जिससे देश आत्मनिर्भर बनेगा।
शर्मा ने कहा घरेलू उद्योग को गैसीकरण प्रक्रिया के माध्यम से कोयले का उपयोग करना चाहिए। खुली भट्टियों में कोयले को जलाना बंद कर देना चाहिए। जब हम कोयले को गैसीकृत करते हैं, तो कार्बन उत्सर्जन न्यूनतम होता है। उन्होंने कहा कि भारत के पास अगले 300 वर्षों के लिए कोयले का भंडार है और उनका उपयोग करने का समय आ गया है। प्रबंध निदेशक ने कहा कि कोयले को संश्लेषण गैस (सिनगैस) में परिवर्तित किया जा सकता है जिसका उपयोग बिजली, पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जा सकता है, जिससे कच्चे तेल के आयात पर निर्भरता कम हो सकती है। उन्होंने कहा कि सिनगैस का उपयोग स्पॉन्ज आयरन बनाने में, कांच और सिरेमिक उद्योग द्वारा और यहां तक कि खाना पकाने में भी किया जा सकता है। इसके अलावा भारत कोयला गैसीकरण उपाय के माध्यम से सबसे सस्ते हाइड्रोजन का उत्पादन कर सकता है।
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