नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) की एक रपट में कहा गया है कि आईआईएफसीएल ने खराब आकलन के आधार पर गलत समय में जेपी इंफ्राटेक को 900 करोड़ रुपये का ऋण दिया। संसद में पेश की गई रपट में कैग ने कहा कि इसका प्रभाव कुछ समय बाद यमुना एक्सप्रेसवे परियोजना पर दिखा और इसके चलते आईआईसीएफएल के खातों में 1,000 करोड़ रुपये की गैर-निष्पादित आस्तियां (एनपीए) दर्ज की गईं।
कैग ने कहा कि कंपनी को यह ऋण उस समय दिया जब राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने इस परियोजना के निर्माण पर रोक लगा रखी थी। कंपनी पर यह रोक ओखला पक्षी अभयारण्य के दस किलोमीटर के दायरे में निर्माण गतिविधियां करने के चलते लगायी गई थी।
कैग ने कहा कि आईआईएफसीएल परियोजना का युक्तिसंगत आकलन करने में विफल रही और इसी के चलते उसके खातों में 1000 करोड़ रुपये का एनपीए दर्ज हुआ है।
लेखापरीक्षक के मुताबिक कंपनी को ऋण ऐसे समय दिया गया जब समूचा रीयल एस्टेट उद्योग दबाव में था। आईआईएफसीएल 165 किलोमीटर एक्सप्रेसवे के साथ लगी 2,500 हेक्टेयर भूमि के विकास से होने वाली आय का वास्तविक आकलन करने में विफल रही। नोएडा से आगरा के बीच की इस परियोजना में रीयल एस्टेट का हिस्सा इसे वहनीय रखने के लिये काफी अहम था। जेपी इंफ्राटेक को यह कर्ज जून 2015 में दिया गया था और दिसंबर 2016 में यह एनपीए बन गया। दिसंबर 2017 तक इस राशि पर 189.89 करोड़ रुपये का ब्याज हो गया।