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महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए हर तरफ से नीतिगत समर्थन की जरूरत: शक्तिकांत दास

रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से प्रभावित अर्थव्यवस्था के पुनरूद्धार को आगे बढ़ाने के लिये सभी पक्षों- राजकोषीय, मौद्रिक और विभिन्न क्षेत्रों- से नीतिगत समर्थन की जरूरत पर जोर दिया है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: June 18, 2021 22:51 IST
महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए हर तरफ से नीतिगत समर्थन की जरूरत: शक्तिकांत द- India TV Paisa
Photo:PTI

महामारी से प्रभावित अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए हर तरफ से नीतिगत समर्थन की जरूरत: शक्तिकांत दास

मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से प्रभावित अर्थव्यवस्था के पुनरूद्धार को आगे बढ़ाने के लिये सभी पक्षों- राजकोषीय, मौद्रिक और विभिन्न क्षेत्रों- से नीतिगत समर्थन की जरूरत पर जोर दिया है। इस महीने की शुरूआत में मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में भाग लेते हुए दास ने कहा था कि अप्रैल और मई में महामारी की दूसरी लहर से अर्थव्यवस्था पर जो प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, उसको देखते हुए आर्थिक पुनरूद्धार को समर्थन देने और उसे टिकाऊ बनाने के लिये मौद्रिक उपायों को जारी रखने की जरूरत है। 

एमपीसी बैठक के शुक्रवार को जारी ब्योरे के अनुसार, ‘‘कुल मिलाकर कोविड-19 की दूसरी लहर ने निकट अवधि के परिदृश्य को बदल दिया है और आर्थिक पुनरूद्धार को आगे तढ़ाने तथा उसे तेजी से पटरी पर लाने के लिये सभी पक्षों- राजकोषीय, मौद्रिक और विभिन्न क्षेत्रों- से नीतिगत समर्थन की जरूरत है।’’ उन्होंने कहा कि आने वाले समय में टीकाकरण की गति और जिस तेजी से हम दूसरी लहर को काबू में ला सकते हैं, वह आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ मुद्रास्फीति के दायरे पर असर डालेगा। 

आरबीआई गवर्नर ने कहा कि रिजर्व बैंक दूसरी लहर से प्रभावित महत्वपूर्ण क्षेत्रों के दबाव को दूर करने के लिये सक्रियता के साथ परंपरागत और गैर-परंपरागत उपाय करने के साथ प्रभावी तरीके से नकदी की उपलब्धता के लिये कदम उठाने को लेकर प्रतिबद्ध है। दास और एमपीसी के पांच अन्य सदस्य शशांक भिडे, आशिमा गोयल, जयंत आर वर्मा, मृदुल के सागर और माइकल देबव्रत पात्रा ने आम सहमति से प्रमुख नीतिगत दर को 4 प्रतिशत पर बरकरार रखने के पक्ष में मत दिया। 

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर पात्रा ने कहा कि पहली लहर के विपरीत इस बार आपूर्ति की स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत बनी हुई है। लेकिन शुद्ध निर्यात को छोड़कर सकल मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और ऐसे में नीतिगत समर्थन की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि एमपीसी ने वृद्धि को समर्थन देने के लिये नीतिगित दर को अब तक के न्यूनतम स्तर पर रखकर इसके लिये आवश्यक स्थिति को बनाये रखने का काम किया है। 

आरबीआई के कार्यकारी निदेशक मृदुल के सागर ने कहा कि राहत की बात यह है कि वृद्धि दर पहली तिमाही में उतनी नीचे आती नहीं दिख रही जो कि पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही में हुई थी। उन्होंने कहा कि यह संभव है कि शुरुआती जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) वृद्धि अनुमान पूर्ण रूप से स्थिति स्पष्ट नहीं करे और असंगठित क्षेत्र पर प्रभाव गहरा हो। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, अगर इस साल अर्थव्यवस्था में 9.5 प्रतिशत की वृद्धि होती है, तो 2021-22 में उत्पादन स्तर महामारी पूर्व 2019-20 की तुलना में सिर्फ 1.6 प्रतिशत ऊंचा होगा। 

समिति के बाह्य सदस्य जयंत आर पाटिल ने कहा कि मुद्रास्फीति संतोषजनक स्तर के मध्य बिंदु से ऊपर बनी हुई है और हमारा अनुमान है कि यह कुछ समय तक ऊंची बनी रहेगी। आशिमा गोयल ने कहा कि पहली लहर के मुकाबले दूसरी लहर में ग्राहकों का भरोसा ज्यादा कम हुआ है। उन्होंने कहा कि यह यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि उच्च जोखिम के कारण उपभोक्ता मांग अभी और कम होगी या फिर लोग स्वयं से एहतियातन यह करेंगे, लेकिन यह तय है कि आय कम होने, नौकरी छूटने, अधिक कर्ज और गरीबी निश्चित रूप से मांग को कम करेगी। 

ब्योरे के अनुसार शंशाक भिडे ने कहा कि अल्पकालीन वृद्धि संभावना को लेकर अनिश्चितता बढ़ी है, लेकिन कुछ सकारात्मक चीजें भी हैं। वैश्विक मांग स्थिति में सुधार से निर्यात बेहतर रहने की उम्मीद है। उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार के बजट में पूंजी व्यय में सुधार पर जोर से भी घरेलू मांग को गति देगी।’’ साथ ही बेहतर मानसून की भविष्यवाणी के साथ कृषि का आर्थिक वृद्धि में योगदान रहने की उम्मीद है। सदस्य ने यह भी कहा कि वह वृद्धि को पटरी पर लाने और उसे टिकाऊ बनाने के लिये जबतक जरूरी हो, उदार रुख बनाये रखने के पक्ष में मतदान कर रहे हैं। 

इस बीच, आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन ने कहा कि कोविड-19 महामारी से बैंकों की फंसी पड़ी संपत्ति का दबाव बढ़ सकता है। इससे वित्तीय स्थिरता पर दबाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि देश के बैंकों पर गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (एनपीए) का दबाव 2015 से है। आरबीआई के 2002 से 2009 के बीच डिप्टी गवर्नर रहे मोहन ने कहा, ‘‘हमारे लिये अन्य देशों के मुकाबले यह और मुश्किल है क्योंकि कोविड-19 के पहले से ही हम फंसे कर्ज की समस्या से जूझ रहे हैं।’’

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