नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से श्रील भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद जी की 125वीं जयंती के अवसर पर 125 रुपये मूल्य का एक विशेष स्मारक सिक्का जारी किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने कहा कि परसों जन्माष्टमी और आज श्रील प्रभुपाद जी की 125वीं जयंती के सुखद संयोग है। ये ऐसा है जैसे साधना का सुख और संतोष एक साथ मिल जाए। उन्होंने कहा कि आजादी का अमृत महोत्सव मनाए जाने के बीच यह अवसर आया है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि प्रभुपाद स्वामी एक अलौकिक कृष्णभक्त तो थे ही, साथ ही वे एक महान भारत भक्त भी थे। उन्होंने देश के स्वतन्त्रता संग्राम में संघर्ष किया था। उन्होंने असहयोग आंदोलन के समर्थन में स्कॉटिश कॉलेज से अपना डिप्लोमा तक लेने से मना कर दिया था।
प्रधानमंत्री ने कहा कि योग के हमारे ज्ञान का पूरे विश्व में प्रसार हुआ है और भारत की सस्टेनेबल लाइफस्टाइल, आयुर्वेद जैसा विज्ञान दुनिया भर में फैल गया है। मोदी ने कहा कि यह हमारा संकल्प है कि इसका लाभ पूरे विश्व को मिलना चाहिए। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब भी हम किसी अन्य देश में जाते हैं और जब वहां मिलने वाले लोग ‘हरे कृष्णा’ कहते हैं, तो हमें काफी अपनापन और गर्व महसूस होता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें यह अहसास तब भी होगा, जब मेक इन इंडिया उत्पादों के लिए भी यही अपनापन मिलेगा। उन्होंने कहा, हम इस संबंध में इस्कॉन से काफी कुछ सीख सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के समय में भक्ति ने ही भारत की भावना को जीवित रखा था। उन्होंने कहा, विद्वान यह आकलन करते हैं कि यदि भक्ति काल में कोई सामाजिक क्रांति नहीं हुई होती तो भारत कहां होता और किस स्वरूप में होता, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। भक्ति ने आस्था, सामाजिक क्रम और अधिकारों के भेदभाव को खत्म करके जीव को ईश्वर के साथ जोड़ दिया। उस मुश्किल दौर में भी, चैतन्य महाप्रभु जैसे संतों ने हमारे समाज को भक्ति भावना के साथ बांधा और ‘आत्मविश्वास पर विश्वास’ का मंत्र दिया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि एक समय अगर स्वामी विवेकानंद जैसे मनीषी आगे आए जिन्होंने वेद-वेदान्त को पश्चिम तक पहुंचाया, तो वहीं विश्व को जब भक्तियोग को देने की ज़िम्मेदारी आई तो श्रील प्रभुपाद जी और इस्कॉन ने इस महान कार्य का बीड़ा उठाया। प्रधानमंत्री ने कहा, उन्होंने भक्ति वेदान्त को दुनिया की चेतना से जोड़ने का काम किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज दुनिया के विभिन्न देशों में सैकड़ों इस्कॉन मंदिर हैं और कई गुरुकुल भारतीय संस्कृति को जीवित रखे हुए हैं। इस्कॉन ने दुनिया को बताया कि भारत के लिए आस्था का मतलब- उमंग, उत्साह, उल्लास और मानवता पर विश्वास है। मोदी ने कच्छ के भूकंप, उत्तराखंड हादसे, ओडिशा और बंगाल में आए चक्रवात के दौरान इस्कॉन द्वारा किए गए सेवा कार्य पर प्रकाश डाला। प्रधानमंत्री ने महामारी के दौरान इस्कॉन द्वारा किए गए प्रयासों की भी सराहना की।
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