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दिवाला कानून में संशोधन अध्यादेश के खिलाफ याचिका, अदालत ने मांगा केन्द्र से जवाब

अध्यादेश के तहत डिफाल्ट मामलों में कार्रवाई को छह माह के लिये निलंबित किया गया है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: July 28, 2020 14:32 IST
Plea against insolvency code ordinance - India TV Paisa
Photo:SOCIAL MEDIA

Plea against insolvency code ordinance 

नई दिल्ली। दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (Insolvency and bankruptcy Code) में संशोधन करने वाले अध्यादेश के खिलाफ दायर याचिका पर मंगलवार को केन्द्र सरकार से जवाब मांगा। इस अध्यादेश के जरिये 25 मार्च 2020 को अथवा इसके बाद सामने आने वाले डिफाल्ट मामलों में आईबीसी के तहत कार्रवाई को छह माह के लिये निलंबित किया गया है। कोरोना वायरस महामारी को देखते हुये सरकार ने यह कदम उठाया। मुख्य न्यायधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने याचिका को लेकर विधि मंत्रालय और भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (Insolvency and bankruptcy board of india) से 31 अगस्त तक जवाब देने को कहा है। याचिका में आईबीसी कानून में अध्यादेश के जरिये किये गये संशोधन को हटाने की मांग की गई है।

केन्द्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता अमित महाजन ने मंत्रालय की तरफ से पेश होते हुये याचिका का विरोध करते हुये कहा कि यह सुनवाई योग्य नहीं है। महाजन ने कहा कि याचिकाकर्ता, राजीव सूरी, यह बताने में असफल रहे हैं कि इस जनहित याचिका को दायर करने से उनका क्या लेना देना है। आईबीसी संशोधन अध्यादेश में कहा गया है कि 25 मार्च और उसके बाद से बैंक कर्ज का नियमित किस्त के अनुरूप भुगतान करने में असफल रहने पर कर्जदार के खिलाफ दिवाला एवं ऋणशोधन कानून के तहत कार्रवाई नहीं की जायेगी। कार्रवाई से यह छूट छह महीने के लिये जिसे एक साल तक भी बढ़ाया जा सकता है, दी गई है।

सरकार ने कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये 25 मार्च से देशभर में लॉकडाउन लागू किया था। आईबीसी कानून में यह व्यवस्था की गई है कि कोई भी बैंक कर्ज नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ दिवाला कानून के तहत कार्रवाई की मांग कर सकता है। कर्ज किस्त के भुगतान में तय समय से यदि एक दिन की भी देरी होती है तो आईबीसी के तहत दिवाला कार्रवाई का प्रावधान इसमें किया गया है। हालांकि, इसमें न्यूनतम राशि एक करोड़ रुपये तय की गई है जो पहले एक लाख रुपये रखी गई थी। सरकार ने कोरोना वायरस के मौजूदा दौर में कर्जदारों को राहत पहुंचाने के लिये कानून में संशोधन किया है।

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