नई दिल्ली: पेट्रोल डीजल की बढ़ी हुई कीमतों ने जनता का बुरा हाल कर रखा है। लेकिन अगर आपको 75 रुपए और 68 रुपए कमश: मिलेगा तो इससे अच्छा क्या होगा। दरअसल एसबीआई ने अपनी आर्थिक अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट में कहा है कि पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने से इसकी कीमतें क्रमशः 75 रुपए और 68 रुपए तक हो सकती है। ऐसा करने पर केंद्र और राज्यों को 1 लाख करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान होगा, जो कि सकल घरेलू उत्पाद का 0.4 फीसदी है। लेकिन आम आदमी को राहने मिलेगी।
भारतीय स्टेट बैंक के समूह के मुख्य आर्थिक सलाहकार डॉ। सौम्या कांति घोष द्वारा लिखित इकोरैप रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य जीएसटी शासन के तहत तेल उत्पादों को नहीं लाना चाहते हैं क्योंकि बिक्री कर और वैट कर राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। रिपोर्ट में कहा गया है कि हर राज्य की अपनी कर संरचना है और प्रत्येक राज्य अपनी आवश्यकताओं के आधार पर विज्ञापन वैलेरियम कर, उपकर, अतिरिक्त वैट / अधिभार का चुनता है। ये कर केंद्र द्वारा लगाए गए कच्चे तेल, परिवहन शुल्क, डीलर कमीशन और फ्लैट उत्पाद शुल्क को ध्यान में रखते हुए लगाए गए हैं, जिससे तेल उत्पादों की कीमतें दुनिया में सबसे ज्यादा हैं।
केंद्र, राज्यों को पेट्रोलॅ-डीजल के दाम घटाने के लिए बात करनी चाहिए: वित्त मंत्री
हालांकि इससे पहले हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि केंद्र और राज्य सरकारों को पेट्रोल और डीजल पर करों को कम करने के लिए आपस में बात करनी चाहिए। हाल के समय में वाहन ईंधन कीमतें ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि उपभोक्ताओं पर बढ़े दामों के बोझ को कम करने के लिए केंद्र और राज्यों को बात करनी चाहिए। भारतीय प्रबंधन संस्थान-अहमदाबाद (आईआईएम-अहमदाबाद) के विद्यार्थियों के साथ बृहस्पतिवार को परिचर्चा में सीतारमण ने कहा कि केंद्र और राज्यों दोनों को ईंधन पर केंद्रीय और राज्य करों को कम करने के लिए बातचीत करनी चाहिए। यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र उपभोक्ताओं को ऊंची कीमतों से राहत के लिए उपकर या अन्य करों को कम करने पर विचार कर रहा है, सीतारमण ने कहा था कि इस सवाल ने उन्हें ‘धर्म-संकट’ में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि यह तथ्य छिपा नहीं है कि इससे केंद्र को राजस्व मिलता है। राज्यों के साथ भी कुछ यही बात है। ‘‘मैं इस बात से सहमत हूं कि उपभोक्ताओं पर बोझ को कम किया जाना चाहिए।’’
इससे पहले दिन में रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकान्त दास ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पर करों को कम करने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच समन्वित कार्रवाई की जरूरत है। सीतारमण ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग कर रहे लोगों पर निशाना साधते हुए कहा कि 2014 से पहले जब कांग्रेस शासित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार सत्ता में थी, तो इसे कानून क्यों नहीं बनाया गया। दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान तीनों नए कृषि कानूनों को रद्द करने के अलावा एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी की मांग भी कर रहे हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि ये कानून एमएसपी के बारे में नहीं हैं।
उन्होंने कहा था कि यह विरोध पिछले साल सितंबर में संसद में पारित कृषि कानूनों को लेकर है। इन कानूनों का एमएसपी से लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा था, ‘‘एमएसपी इन तीन कानूनों का हिस्सा नहीं है। ऐसे में तीन कानूनों का विरोध करना और उसके बाद एमएसपी का मुद्दा उठाना सही नहीं है।’’ सीतारमण ने कहा कि केंद्र ने किसान यूनियनों के साथ बैठक के दौरान उन्हें स्पष्ट कर दिया है कि मौजूदा एमएसपी व्यवस्था इन कानूनों का हिस्सा नहीं है। वित्त मंत्री ने कहा, ‘‘22 उत्पाद एमएसपी की सूची में है। हालांकि, एमएसपी दिया जा रहा है, लेकिन किसान आ नहीं रहे हैं। बाजार के बाहर उन्हें एमएसपी से ऊंचा दाम मिल रहा है।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या केंद्र अगले वित्त वर्ष के विनिवेश के लक्ष्य को हासिल कर लेगा, सीतारमण ने इसका हां में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि पूर्व के वित्त वर्षों में विनिवेश लक्ष्य हासिल नहीं होने पाने की कई वजहें रही हैं। पिछले साल कोविड-19 था, तो उससे पिछले साल अर्थव्यवस्था सुस्त थी।