नई दिल्ली। ऑल इंडिया पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन (एआईपीडीए) ने नरेंद्र मोदी सरकार के उस फैसले के खिलाफ कोर्ट में जाने का फैसला लिया है, जिसमें तेल मार्केटिंग कंपनियों को अगले पांच साल के दौरान देश में पेट्रोल पंपों की संख्या बढ़ाकर दोगुना करने की अनुमति दी गई है। डीलर्स के प्रमुख संगठन ने इस फैसले की कानूनी वैधता पर सवाल उठाए हैं। संगठन का कहना है कि पेट्रोल पंपों की संख्या बढ़ाने वाला यह कदम सरकार की खुद की नीति के विपरीत है।
एआईपीडीए के अध्यक्ष अजय बंसल ने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार ने 2025 तक वैकल्पिक ईंधन को बढ़ावा देने के लिए भारत में पेट्रोल पंप बंद करने की घोषणा की है, लेकिन अब विज्ञापन जारी कर नए पेट्रोल पंप खोलने की बात की जा रही है। ऐसे में इस नीति का क्या होगा।
वर्तमान में देश में लगभग 56,000 रिटेल पेट्रोल पंप हैं, जिनका संचालन तीन सार्वजनिक क्षेत्र की तेल मार्केटिंग कंपनियों इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन, भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल) और हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कॉरपोरेशन लिमिटेड (एचपीसीएल) द्वारा किया जा रहा है। इंडियन ऑयल के 26,982, बीपीसीएल के 15,802 और एचपीसीएल के 12,865 पेट्रोल पंप हैं।
सरकार ने 25 नवंबर को सार्वजनिक क्षेत्र की तेल मार्केटिंग कंपनियों को अपना विस्तार करने और अगले पांच सालों में पेट्रोल पंपों की संख्या बढ़ाकर दोगुना करने की अनुमति प्रदान की है। सरकार ने यह कदम देश में पेट्रोल और डीजल की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उठाया है। इसके अलावा, देश में प्राइवेट कंपनियों द्वारा संचालित 6,000 पेट्रोल पंप भी हैं।
उल्लेखनीय है कि भारत अपने तेल जरूरत का 83 प्रतिशत हिस्सा आयात के जरिये पूरा करता है। पिछले वित्त वर्ष में भारत ने 220.43 मिलियन टन क्रूड ऑयल का आयात करने पर 87.7 अरब डॉलर की भारी राशि खर्च की थी।
धंधा घटने का है डर
पेट्रोल पंप डीलर्स का यह कदम सरकार पर और अधिक पेट्रोल पंप न खोलने का दबाव बनाने के लिए भी हो सकता है। देश में जितने अधिक पेट्रोल पंप खुलेंगे, उससे पुराने पेट्रोल पंपों का धंधा कम होगा और बाजार में प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी। इस विरोध के पीछे एक यह भी वजह हो सकती है।