नई दिल्ली। 2013 से लेकर अब तक पेट्रोल के दाम में 32 बार कटौती की गई, जबकि इस दौरान इसकी कीमत 21 बार बढ़ाई गई। इसी प्रकार डीजल के दामों में 19 बार कटौती की गई, जबकि 28 बार इसकी कीमतों में वृद्धि की गई। यह जानकारी वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को लोकसभा में दी।
पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की ओर से निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में एक सवाल के उत्तर में बताया कि सरकार ने अप्रैल 2001 से एटीएफ, 26 जून 2010 से पेट्रोल और 19 अक्टूबर 2014 को डीजल को बाजार के हवाले कर दिया था। तब से सार्वजनिक क्षेत्र की तेल विपणन कंपनियां अंतरराष्ट्रीय और अन्य बाजारों की परिस्थितियों के मुताबिक इन उत्पादों की कीमत घरेलू बाजार के लिए स्वयं तय करती हैं। उन्होंने कहा कि एक अप्रैल 2013 से पेट्रोल की कीमतों में अब तक 32 बार कटौती की गई है और 21 बार इसकी कीमत बढ़ाई गई है। इसी प्रकार डीजल की कीमत 19 बार घटाई गई है और 28 बार बढ़ाई गई है।
सीतारमण ने कहा कि देश में पेट्रोल और डीजल का खुदरा विक्रय मूल्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोल-डीजल की कीमत से संबंधित हैं और तेल विपणन कंपनियां वर्तमान में खुदरा विक्रय मूल्य तय करने के लिए व्यापार समान मूल्य पद्धति का उपयोग कर रही हैं। पेट्रोल और डीजल के खुदरा विक्रय मूल्य में अन्य लागत तत्व जैसे एक्साइज ड्यूटी, बीएस-4 प्रीमियम, मार्केटिंग कॉस्ट और मार्जिन आदि शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में होने वाली हलचल से अन्य लागत में कोई घट या बढ़ नहीं की जाती है। निर्मला ने बताया कि पीडीएस केरोसीन और सब्सिडाइज्ड घरेलू एलपीजी की कीमतों में 25 जून 2011 के बाद कोई बढ़ोत्तरी नहीं की गई है।
उन्होंने कहा कि लोगों में यह गलत धारणा है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमतें कम हैं तो सरकारी तेल कंपनियां खूब मुनाफा कमा रही हैं, वास्तव में यह सही नहीं है। 2013-14 में सरकारी तेल कंपनियों ने टैक्स के बाद केवल 1.34 फीसरी और 2014-15 में 1.49 फीसदी मुनाफा कमाया है। सीतारमण ने कहा कि पिछले वित्त वर्ष के पहले नौ महीने में तेल कंपनियों को इनवेंट्री कॉस्ट के रूप में पेट्रोल पर 29,200 करोड़ और डीजल पर 11,400 करोड़ रुपए का घाटा हुआ है।