नई दिल्ली। पीएम मोदी सरकार देश में कारोबारी माहौल सुधारने के लिए एक बाद एक कदम उठा रही है। कभी मेक इन इंडिया तो कभी स्टार्टअप इंडिया, इनके जरिये कारोबार को बढ़ावा देना चाहती है। लेकिन, जिस देश में पेटेंट कराने में 6 साल लगते हों, वहां मेक इन इंडिया सफल होगा या नहीं यह बड़ा सवाल है। इंडियास्पेंड के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में 68,000 पेटेंट को स्वीकृति मिली है। वहीं, 2015 में स्वीकृत 98 फीसदी एप्लिकेशन 5 साल से अधिक पुराने हैं। पिछले साल कुछ ऐसे एप्लिकेशन को मंजूरी मिली है, जो 19 साल पुराने हैं। देश में पेटेंट मिलने में इतनी देरी से मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ का सपना टूट सकता है। अमेरिका और ब्रिटेन में अप्रूवल में औसतन तीन वर्ष का समय लगता है।
प्रधाममंत्री नरेंद्र मोदी मेक इन इंडिया के तहत भारत में और अधिक मल्टिनेशनल कंपनियों को लाने की योजना बना रहे हैं। लेकिन पेटेंट में देरी से इसको झटका लग सकता है। हालांकि मोदी सरकार ने पेटेंट जल्दी मिल सके इसके लिए एप्लिकेशन में बदलाव किए हैं। इसके तहत फॉर्म की संख्या घट गई है। ग्राफिक के माध्यम से समझिए कि पेटेंट ऑफिस पर वर्कलोड कैसे बदला है।
इसलिए जल्द मिलना चाहिए पेटेंट
पेटेंट से कंपनियां अपने रिसर्च के आधार पर इन्नोवेटिव प्रोडक्ट बाजार में उतार सकती है। लेकिन, पेटेंट में देरी होने से बाजार में प्रोडक्ट उतारने में भी देरी होती है। अगर सरकार विदेशी कंपनियों को ‘मेक इन इंडिया’ में भागीदार बनाना चाहती है तो पेटेंट जल्दी मिले, ऐसी व्यवस्था करनी होगी। एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक पेटेंट में देरी की मुख्य वजह परीक्षकों की कमी का होना है। जून 2015 में 337 परीक्षकों की पोस्ट उपलब्ध थी, लेकिन इनमें से सिर्फ 130 ही भर पाईं।
इसके बारे में क्या कर रही है सरकार
कंपनियों को पेटेंट मिलने में हो रही देरी को देखते हुए सरकार ने पेटेंट नियम 2003 में संशोधन का प्रस्ताव किया है, जिससे परीक्षण में तेजी लाई जा सके। हालांकि सरकार ने जल्दी पेटेंट के लिए कड़ी शर्तें रखी हैं। कंपनी को पेटेंट मिलने के 2 साल के अंदर भारत में मैन्यूफैक्चिंग शुरू करना होगा। इस उपाय से कंपनियां जल्दी पेटेंट ले सकती हैं।