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रेडी-टू-ईट परांठों पर लगेगा 18 फीसदी GST, अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग का फैसला

बेंग्लुरू की रेडी-टू-ईट फूड बनाने वाली कंपनी के मामले पर दिया गया फैसला

Written by: India TV Paisa Desk
Updated on: June 13, 2020 8:02 IST
Parota are not roties will attract 18 percent GST says AAR- India TV Paisa
Photo:GOOGLE

Parota are not roties will attract 18 percent GST says AAR

नई दिल्ली। मीडिया के कई हिस्सों में आ रही पराठें पर जीएसटी की खबरों के बाद सेंट्रल बोर्ड ऑफ इनडायरेक्ट टैक्स एंड कस्टम्स ने सफाई दी है। CBIC के मुताबिक अथॉरिटी ऑफ एडवांस रूलिंग ने फैसला दिया है कि फ्रोजन या फिर प्रिजर्व्ड पराठों को रोटी या फिर खाकरा जैसी खाद्य वस्तुओं के समान नहीं मान सकते। एएआर जीएसटी मामलों पर विचार करती है। अथॉरिटी  के मुताबिक ऐसे गेहूं का परांठा और मालाबार परांठा की शेल्फ लाइफ 3 से 7 दिन तक होती है और ये आम रोटी से अलग है जो कि पूरी तरह से पक कर तैयार होती है।

एएआर के मुताबिक आम रोटी या इसी तरह से पूरी तरह तैयार हुई वस्तुओं की तरफ फ्रोजन पराठों को निचली जीएसटी दरों में नहीं रखा जा सकता ।  क्योंकि खाने से पहले इसे और प्रसंस्कृत करने की जरूरत होती है, और न ही ये अनिवार्य खाद्य पदार्थ हैं। ऐसे में इसपर 18 प्रतिशत की दर से माल एवं सेवा कर (जीएसटी) लगेगा। 

दरअसल बेंगलुरु की कंपनी आईडी फ्रेश फूड्स ने एएआर की कर्नाटक पीठ के समक्ष आवेदन कर पूर्ण गेहूं का परांठा और मालाबार परांठा पर जीएसटी दर के बारे में पूछा था। कंपनी रेडी-टु-कुक उत्पाद मसलन इडली, डोसा, परांठा और चपाती बेचती है। एएआर ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि सीमा शुल्क के शुल्क कानून या जीएसटी शुल्क में परांठे को लेकर कोई विशिष्ट प्रविष्टि नहीं है। एएआर ने कहा कि 5 प्रतिशत की जीएसटी दर उन उत्पादों पर लागू होगी जो 1905 या 2016 के शीर्षक के तहत आते हैं। ऐसे उत्पाद खाखरा, सादी चपाती और रोटी हैं। परांठा 2016 शीर्षक के तहत आता है। यह न तो खाखरा है, न ही सादी चपाती या रोटी। एएआर ने कहा कि खाखरा, सादी चपाती और रोटी पूरी तरह तैयार सामग्री है। इन्हें उपभोग के लिए और तैयार करने की जरूरत नहीं होती। वहीं परांठा या मालाबार परांठा इन उत्पादों से अलग है। इसके अलावा ये आम उपभोग के और आवश्यक प्रकृति के उत्पाद भी नहीं है। मानव उपभोग के लिए इनका और प्रसंस्करण करने या तैयार करने की जरूरत होती है।

एएमआरजी एंड एसोसिएट्स के वरिष्ठ भागीदार राजन मोहन ने कहा कि इन उत्पादों में कर का अंतर 13 प्रतिशत का है जिसकी वजह से रोटी और परांठे के वर्गीकरण को लेकर विवाद पैदा हुआ है। जमीनी वास्तविकता यह है कि आम भारतीय भाषा में इन शब्दों का एक जैसे ही इस्तेमाल किया जाता है।

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