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महामारी की अनिश्चितता के कारण बढ़ी नकदी की मांग, डिजिटल भुगतान को भी मिला बढ़ावा

2020-21 के दौरान करेंसी-इन-सर्कुलेशन में वर्तमान में हुई वृद्धि 17.2 प्रतिशत है, जो पुराने ट्रेंड्स के अनुरूप है। करेंसी-इन-सर्कुलेशन में लॉन्ग-टर्म एवरेज वृद्धि पिछले 20 सालों के दौरान 15 प्रतिशत रही है।

Edited by: India TV Paisa Desk
Published on: November 09, 2021 18:59 IST
Pandemic uncertainties led to rise in demand for cash- India TV Paisa
Photo:PIXABAY

Pandemic uncertainties led to rise in demand for cash

नई दिल्‍ली। कोविड-19 महामारी के कारण अनिश्चितताओं की वजह से न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में मुद्रा नोटों यानी नकदी की मांग में वृद्धि हुई है। आधिकारिक सूत्रों ने हालांकि उस आलोचना को खारिज कर दिया कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था में नकदी को कम करने में विफल रही है। सरकारी सूत्रों ने कहा कि नोटबंदी के बाद डिजिटल भुगतान प्रणाली के विकास से अंततः नकदी पर निर्भरता पर अंकुश लगेगा। आधिकारिक आंकड़े प्लास्टिक कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) सहित विभिन्न तरीकों से डिजिटल भुगतान में उछाल की ओर इशारा करता है।

भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का यूपीआई प्रणाली देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है। यूपीआई को 2016 में लॉन्च किया गया था और इसके जरिये लेन-देन महीने-दर-महीने बढ़ रहा है। अक्टूबर 2021 में, मूल्य के संदर्भ में लेनदेन 7.71 लाख करोड़ रुपये या 100 अरब डॉलर से अधिक था। अक्टूबर में यूपीआई के जरिये कुल 421 करोड़ लेनदेन किए गए। सूत्रों ने यह भी बताया कि अमेरिका में भी, कुल नकदी लेनदेन 2020 के अंत तक 2.07 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच गई, जो एक साल पहले की तुलना में 16 प्रतिशत अधिक है और यह 1945 के बाद से एक साल की सबसे बड़ी प्रतिशत वृद्धि भी है।

सूत्रों ने बताया कि आर्थिक अनिश्चितता की अवधि के दौरान नकदी की मांग हमेशा बढ़ती है और चूंकि नकदी संपत्ति का सबसे तरल रूप है, इसलिए भारी अनिश्चितता की अवधि के दौरान नकदी में वृद्धि की उम्मीद रहती है। महामारी के दौरान नकदी की मांग में वृद्धि एक विश्वव्यापी घटना रही है। 

2020-21 के दौरान करेंसी-इन-सर्कुलेशन में वर्तमान में हुई वृद्धि 17.2 प्रतिशत है, जो पुराने ट्रेंड्स के अनुरूप है। करेंसी-इन-सर्कुलेशन में लॉन्‍ग-टर्म एवरेज वृद्धि पिछले 20 सालों के दौरान 15 प्रतिशत रही है। सूत्रों ने बताया कि जीडीपी के प्रतिश‍त के रूप में, सीआईसी पिछले एक दशक के दौरान 11-12 प्रतिशत के बीच रहा है।

आरबीआई के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 4 नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये मूल्‍य के नोट चलन में थे, जो 29 अक्‍टूबर, 2021 को बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसी प्रकार कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्‍यवस्‍था में नकली नोटों की संख्‍या में वित्‍त वर्ष 2018-19 से वित्‍त वर्ष 2020-21 के बीच 1.1 लाख की कमी आई है। यह नोटबंदी के दूसरे लक्ष्‍य की प्राप्ति की ओर इशारा करता है।

सूत्रों ने कहा कि यह स्‍पष्‍ट है कि नोटबंदी का प्राथमिक उद्देश्‍य चलन से काला धन और नकली नोटों को बाहर करना था एवं नकदी को डिजिटल पेमेंट सिस्‍टम के साथ बदलकर डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना अंतिम लक्ष्‍य था। इन लक्ष्‍यों को प्राप्‍त कर लिया गया है लेकिन डिजिटलीकरण एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।

सूत्रों ने कहा कि करेंसी-इन-सर्कुलेशन में वृद्धि केवल इस बात की ओर इशारा करता है कि इस समय नकद और डिजिटल दोनों एक साथ काम कर रहे हैं और किसी अनिश्चित समय में, जैसे कोविड-19 महामारी से उत्‍पन्‍न अनिश्चितता, लोग डिजिटल भुगतान करते हैं लेकिन सावधानी उपायों के तहत नकदी को एक तरल संपत्ति के रूप में अपने पास रखते हैं। 

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