नई दिल्ली। भारत के पूंजी बाजार में पार्टिसिपेटरी नोट (पी-नोट) के जरिए निवेश अप्रैल अंत तक घटकर 2.11 लाख करोड़ रुपए के 20 महीने के न्यूनतम स्तर पर आ गया, जबकि सेबी ने इस मार्ग के जरिए आने वाले कोषों पर कड़ी निगाह रखी हुई है। सेबी ने इस महीने विवादास्पद पी-नोट के दुरुपयोग पर नियंत्रण के लिए मानदंड सख्त बनाए हैं। इसके तहत इस विदेशी निवेश के जरिए उपयोक्ताओं के लिए भारतीय मनी लॉन्ड्रिंग रोधी कानून का अनुपालन और संदिग्ध हस्तांतरण की तुरंत जानकारी उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
पी-नोट पंजीकृत विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा उन विदेशी निवेशकों को जारी किए जाते हैं जो भारतीय बाजार में सीधे तौर पर पंजीकृत नहीं होना चाहते। लेकिन अब उन्हें उचित जांच की प्रक्रिया से गुजरना होगा। सेबी आंकड़ों के मुताबिक भारतीय बाजारों (इक्विटी, बांड और डेरिवेटिव) में पी-नोट का कुल मूल्यांकन अप्रैल अंत में 2,12,132 करोड़ रुपए हो गया, जो मार्च अंत में 2,23,077 करोड़ रुपए था। यह अगस्त 2014 से अब तक का न्यूनतम स्तर है, जबकि ऐसे निवेश का कुल मूल्यांकन 2.11 लाख करोड़ रुपए था।
यह भी पढ़ें- पी-नोट्स इन्वेस्टमेंट में चार महीने बाद हुआ इजाफा, मार्च में 2.23 लाख करोड़ रुपए आए भारतीय बाजार में
बीते वित्त वर्ष में कंपनियों ने ऋण से रिकॉर्ड 4.92 लाख करोड़ रुपए जुटाए
भारतीय कंपनियों ने वित्त वर्ष 2015-16 में व्यापारिक जरूरतों को पूरा करने के लिए कॉरपोरेट बांडों के निजी नियोजन से रिकॉर्ड 4.92 लाख करोड़ रुपए जुटाए, जो इससे पिछले साल के मुकाबले छह फीसदी अधिक है।
प्राइम डाटाबेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनियों ने कॉरपोरेट बांडों के निजी नियोजन से 4,92,047 करोड़ रुपए जुटाए, जबकि इससे पिछले साल यह आंकड़ा मार्च 2015 तक 4.66 लाख करोड़ रुपए था। निजी ऋण के निजी नियोजन में कंपनियां कोष इकट्ठा करने के लिए संस्थागत निवेशकों के लिए प्रतिभूतियां या बांड जारी करती हैं।
यह भी पढ़ें- मोदी सरकार: तीसरे साल में लाए जाएंगे और अनेक महत्वपूर्ण विधेयक, उठाए जाएंगे नए नीति निर्धारक कदम