मुंबई। आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने स्वीकार किया कि वह अपनी नई किताब में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम के प्रति समान रूप से उदार नहीं रहे। उन्होंने कहा कि फिर भी चिदंबरम ने उनकी पुस्तक का समर्थन कर बड़प्पन और पेशेवराना रवैया दिखाया है। आरबीआई गवर्नर के तौर पर अपने कार्यकाल के बारे में हाल में प्रकाशित अपनी पुस्तक में सुब्बाराव ने चिदंबरम और प्रणब मुखर्जी की बेहद आलोचना की जो 2008 से 2013 के उनके कार्यकाल के दौरान वित्त मंत्री थे।
सुब्बाराव ने सोमवार शाम को कहा, उन्होंने (चिदंबरम ने) किताब का समर्थन कर बहुत बड़प्पन दिखाया है और उनका रवैया इस संबंध में पेशेवराना रहा। मैं उनके प्रति इस संबंध में समान रूप से उदार नहीं रहा। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद के दौर के सबसे मुश्किल दौर में गवर्नर रहे सुब्बाराव ने कहा कि उन्होंने भी चिदंबरम के बारे में कुछ सकारात्मक बातें भी कही हैं जिनके वित्त मंत्रित्व काल में वह वित्त सचिव और बाद में आरबीआई प्रमुख रहे। उन्होंने कहा, मैंने किताब में उनके खिलाफ अपने मतभेद के बारे में बात की है लेकिन मैंने उनके बारे में कुछ सकारात्मक बातें भी कही हैं। उन्होंने किताब का जो समर्थन किया, मैं उसके लिए उनका आभारी हूं।
सुब्बाराव की किताब हू मूव्ड माय इंटरेस्ट रेट्स – लीडिंग द रिजर्व बैंक आफ इंडिया थ्रू फाइव टब्र्यूलेंट इयर्स इसी महीने आई है। पेंग्विन रैंडम हाउस द्वारा प्रकाशित 352 पृष्ठ की किताब के परिचय में चिदंबरम ने लिखा, इसमें आरबीआई प्रमुख के तौर पर विद्वान डाक्टर सुब्बाराव का सूक्ष्म और ईमानदार कथ्य है। उनकी बौद्धिक निष्ठा इस किताब के हर पन्ने पर निखरकर आती है। यह पूछने पर कि मुखर्जी की ओर से ऐसा समर्थन क्यों नहीं आया, सुब्बाराव ने कहा कि वर्तमान राष्ट्रपति से लिखने को नहीं कहा गया था।
सुब्बाराव से जब यह पूछा गया है कि उन्होंने किताब में एच आर खान के दूसरे कार्यकाल का जिक्र क्यों नहीं किया, उन्होंने कहा कि कुछ डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति में सरकार ने मेरी सिफारिशों को जरूर टाला लेकिन खान को उनके कार्यकाल के फौरन बाद फिर से नियुक्त कर दिया। इस किताब में उन्होंने कहा है कि सरकार की इच्छा के खिलाफ खड़े होने की कीमत आरबीआई को उनके सहयोगी सुबीर गोकर्ण और उषा थोराट के तौर पर चुकानी पड़ी। किताब में अपने-आपको परिस्थितियों का शिकार के रूप में पेश किए जाने के बारे में पूछने पर सुब्बाराव ने कहा कि ऐसा नहीं है लेकिन हर गवर्नर उस दौर की पैदाइश होता है जिसमें वह काम करता है।
सुब्बाराव ने चिदंबरम की ज्यादा आलोचना की है जिनके दूसरे कार्यकाल के दौरान वृद्धि दर प्रणब मुखर्जी के कार्यकाल के मुकाबले गिरी। इस किताब में ऐसे प्रसंगों की भरमार है कि कैसे मंत्री नीतिगत दर संबंधी फैसलों पर आरबीआई के साथ मतभेद को सार्वजनिक करते हैं। अक्टूबर 2008 में नकदी प्रबंधन समिति के गठन पर चिदंबरम के साथ मतभेद के संबंध में उन्होंने कहा, मैं इस फैसले से परेशान और दुखी था। चिदंबरम ने स्पष्ट रूप से आरबीआई के क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया था क्योंकि नकदी प्रबंधन विशिष्ट रूप से केंद्रीय बैंक के अधिकार क्षेत्र में आता है। उन्होंने न सिर्फ मुझसे परामर्श नहीं किया बल्कि अधिसूचना जारी करने से पहले मुझसे बताया तक नहीं था। उस समय वित्त सचिव अरण रामनाथन थे।