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ओएनजीसी, एनटीपीसी और सीआईएल करेंगी तीन यूरिया प्लांट्स का पुनरोद्धार

सरकारी कंपनी ओएनजीसी, एनटीपीसी और कोल इंडिया (सीआईएल) को बंद पड़े एक-एक यूरिया प्लांट को दोबारा शुरू करने को कहा गया। इससे उत्पादन बढ़ेगा और आयात घटेगा।

Dharmender Chaudhary
Published : April 08, 2016 9:31 IST
ओएनजीसी, एनटीपीसी और सीआईएल करेंगी तीन यूरिया प्लांट का पुनरोद्धार, बढ़ेगा उत्पादन और घटेगा आयात
ओएनजीसी, एनटीपीसी और सीआईएल करेंगी तीन यूरिया प्लांट का पुनरोद्धार, बढ़ेगा उत्पादन और घटेगा आयात

नई दिल्ली। सरकारी कंपनी ओएनजीसी, एनटीपीसी और कोल इंडिया (सीआईएल) को बंद पड़े एक-एक यूरिया प्लांट को दोबारा शुरू करने को कहा गया। इसपर अगले चार वर्षो में करीब 18 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। घरेलू उत्पादन को बढ़ाकर, आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए सरकार ने पीएसयू कंपनियों को उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में दोबारा उत्पादन शुरू करने को कहा है।

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पुनरोद्धार योजना की रूपरेखा को तैयार करने के लिए उर्वरक मंत्री अनंत कुमार, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान और बिजली एवं कोयला मंत्री पीयूष गोयल की एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जो काम प्राकृतिक गैस की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। सरकारी गैस कंपनी गेल इंडिया लिमिटेड को उत्तर प्रदेश के जगदीशपुर और पश्चिम बंगाल के हल्दिया तक पाइपलाइन बिछाने के काम में तेजी लाने को कहा गया है ताकि उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, बिहार के बरौनी और झारखंड के सिन्दरी में बंद पड़े यूरिया संयंत्रों को इससे जोड़ा जा सके।

सूत्रों के अनुसार बरौनी में यूरिया प्लांट के पुनरोद्धार के लिए ओएनजीसी, हिन्दुस्तान फर्टिलाईजर कारपोरेशन लिमिटेड (एचएफसीएल) के साथ साझा उपक्रम तैयार करेगी। फर्टिलाईजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एफसीआईएल) सिन्दरी और गोरखपुर के प्लांट के पुनरोद्धार के लिए क्रमश: सीआईएल और एनटीपीसी के साथ अलग साझा उपक्रम बनाएगी। इन तीन के अलावा ओडि़शा के तालचेर में और तेलंगाना के रामागुंडम में दो बंद पड़े यूरिया संयंत्रों के पुनरोद्धार का काम पहले ही शुरू हो गया है।

भारत का यूरिया उत्पादन वित्तवर्ष 2015-16 में रिकॉर्ड 2.45 करोड़ टन के स्तर को छू गया। जबकि देश की कुल यूरिया मांग तीन करोड़ टन की है और शेष बचे हिस्से को आयात के जरिए पूरा किया जाता है। यूरिया एक नियंत्रित उर्वरक है और इसका बिक्री मूल्य 5,360 रुपए प्रति टन की दर से तय है। सरकार उत्पादन की लागत और बिक्री मूल्य के बीच का अंतर विनिर्माताओं को सब्सिडी के रूप में भुगतान करती है।

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