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60 डॉलर प्रति बैरल तक के कच्चे तेल से राजकोषीय गणित पर असर नहीं होगा: सिन्हा

सरकार ने कहा कि कच्चे तेल के भाव 60 डॉलर प्रति बैरल के नीचे बने रहें तो उसके राजकोषीय समीकरणों और मुद्रास्फीति की गणना प्रभावित नहीं होगी।

Abhishek Shrivastava
Updated : June 10, 2016 15:53 IST
कच्‍चे तेल का भाव 40-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहने पर भारत को नहीं परेशानी, ज्‍यादा वृद्धि हुई तो बढ़ेगी चिंता
कच्‍चे तेल का भाव 40-60 डॉलर प्रति बैरल के बीच रहने पर भारत को नहीं परेशानी, ज्‍यादा वृद्धि हुई तो बढ़ेगी चिंता

नई दिल्ली। सरकार ने कहा कि कच्चे तेल का भाव 60 डॉलर प्रति बैरल के नीचे बने रहे  तो इससे राजकोषीय समीकरणों और मुद्रास्फीति की गणना प्रभावित नहीं होगी। यह वक्तव्य ऐसे समय आया है, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल फिर चढ़कर 50 डॉलर तक पहुंच गया है, जो 11 महीने का उच्चतम स्तर है। वित्त राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने कहा कि यदि तेल के दाम 40-60 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में बने रहें तो यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ठीक रहेगा, लेकिन यदि यह इससे आगे जाते हैं तो चिंता की बात हो सकती है। देश का आयात खर्च कम करने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने में जिन बातों से मदद मिली है उनमें एक कारक कच्चे तेल के दामों में कमी भी है।

भारत अपनी कच्चे तेल की 80 फीसदी जरूरत आयात से पूरी करता है। कच्चे तेल के दाम में एक डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी की स्थिति में भारत को हर साल 9,126 करोड़ रुपए ( 1.36 अरब डॉलर) अतिरिक्त खर्च करने होंगे। साथ ही इसका असर मुद्रास्फीति और वृद्धि पर भी होगा। सिन्हा ने कहा, यदि तेल के दाम 40 से 60 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहते हैं, तो मुझे लगता है कि इसमें दिक्कत नहीं होगी। अधिकांश भविष्यवक्ताओं के अनुमान के अनुसार ये इसी दायरे में रहेंगे। पर यह इससे ऊपर जाते हैं, तो यह सवाल बन जाएगा।

भारत ने 2015-16 में कच्चे तेल के आयात पर 63.96 अरब डॉलर खर्च किए। 2014-15 में तेल आयात पर 112.7 अरब डॉलर तथा 2013-14 में 143 अरब डॉलर खर्च किए गए। चालू वित्त वर्ष में आयात बिल 48 डॉलर प्रति बैरल के औसत दाम पर 66 अरब डॉलर रहने का अनुमान है। पिछले सप्ताह वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी कहा था कि भारत तेल के मौजूदा मूल्यों को झेल सकता है, लेकिन ऊंचे दाम से अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी और मुद्रास्फीतिक दबाव भी बढ़ेगा।

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