नई दिल्ली। एक लाख रुपए से अधिक की बैंक धोखाधड़ी के मामलों में वित्त वर्ष 2018-19 के दौरान कमी आई है और ऐसे 6,735 मामले सामने आए हैं, जबकि पिछले वित्त वर्ष में इन मामलों की संख्या 9,866 थी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्य सभा में एक लिखित उत्तर में बताया कि 2018-19 के दौरान 6,735 धोखाधड़ी के मामले पकड़े गए हैं, जिनमें 2,836 करोड़ रुपए की राशि शामिल है। वहीं पिछले वित्त वर्ष में 4,228 करोड़ रुपए वाले 9,866 मामले पकड़े गए थे।
उन्होंने कहा कि वित्तीय प्रणाली में अनुशासन की कमी और एक सुस्त क्रेडिट संस्कृति के कारण धोखाधड़ी की संभावना वाले मामलों की संख्या बढी थी। उन्होंने कहा कि इससे पहले वित्तीय प्रणाली में विभिन्न हितधारकों के बीच क्रेडिट संस्कृति और अनुशासन बहुत लचीला था। धन को बाहर ले जाने के लिए शेल कंपनियां काम कर रही थीं, डिफॉल्ट होने या देश छोड़कर भाग जाने पर भी संपत्तियों पर नियंत्रण और वित्त तक पहुंच, पासपोर्ट की जानकारी उपलब्ध न होना और बैंकों के पास लुक-आउट नोटिस जारी न करने की शक्ति की वजह से कर्जदारों को यह भरोसा हो गया था कि वह डिफॉल्ट, विलफुल डिफॉल्ट या धोखाधड़ी कर बच सकते हैं।
मंत्री ने कहा कि बैंक कर्मचारियों की भूमिका पर भी पहले ध्यान नहीं दिया जाता था और ऑडिटर्स को स्वतंत्र रूप से विनियमित नहीं किया जाता था। सीतारमण ने कहा कि व्यापक सुधारों के माध्यम से ऋण संस्कृति में बदलाव किया गया है और वित्तीय प्रणाली में प्रत्येक हितधारक के लिए अनुशासन को कड़ा किया गया है, जिसकी वजह से धोखाधड़ी के मामलों में गिरावट आई है।
मंत्री ने कहा कि आरबीआई ने इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल ट्रांजैक्शन से संबंधित सुरक्ष्ज्ञा और जोखिम उपायों के संबंध में व्यापक निर्देश जारी किए हैं, जिसमें सभी लेनदेन के लिए ऑनलाइन अलर्ट, मर्चेंट टर्मिनल्स का सर्टिफिकेशन और सभी मौजूदा मैग्नेटिक स्ट्रिप कार्ड को ईएमवी चिप और पिन कार्ड से बदलना शामिल है।