नई दिल्ली। आर्थिक सुस्ती को बैंकों की बढ़ती गैर निष्पादित आस्तियों (NPA) के लिए जिम्मेदार बताते हुए वित्त मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट में कहा गया है कि दबाव यदि और बढ़ा तो बैंकों का सकल एनपीए मार्च 2017 तक बढ़कर 6.9 फीसदी हो सकता है। भारतीय रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के हवाले से इसमें कहा गया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल NPA सितंबर 2015 में 5.14 फीसदी था जो कि सितंबर 2016 में बढ़कर 5.4 फीसदी हो सकता है।
वित्त मंत्रालय की 2015-16 सालाना रिपोर्ट में कहा गया है, अगर वृहद आर्थिक हालात और बिगड़ते हैं तो सकल NPA और बढ़ सकता है और यदि स्थिति और विकट होती है तो मार्च 2017 तक यह बढ़कर लगभग 6.9 फीसदी हो सकता है। बैंकों की पूंजी पर्याप्तता का संकेतक माना जाने वाला पूंजी व जोखिम आस्ति अनुपात (सीआरएआर) मार्च 2017 तक घटकर 10.4 फीसदी रह सकता है जो कि सितंबर 2015 में 12.7 फीसदी था।
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रिपोर्ट के अनुसार बैंकों के NPA में वृद्धि के मुख्य कारणों में हाल के समय में घरेलू वृद्धि में नरमी, वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में धीमा सुधार तथा वैश्विक बाजारों में जारी अनिश्चितता शामिल है। इसमें कहा गया है कि बाहरी कारणों के अलावा खनन क्षेत्र में रोक, बिजली और इस्पात क्षेत्र में परियोजनाओं को मंजूरी में देरी। कच्चे माल और बिजली की कमी से कीमतों में उतार चढ़ाव से ढांचागत क्षेत्र के कामकाज पर असर पड़ा। इन क्षेत्रों को पिछले समय में बैंकों ने बढ-चढ़कर कर्ज दिया था। रिपोर्ट के अनुसार ढांचागत क्षेत्र को दिए गए कर्ज का सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर काफी असर पड़ा है।
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