नयी दिल्ली। देश के एक प्रमुख वाणिज्य एवं उद्योग मंडल ने रविवार को कहा कि प्रमुख क्षेत्रीय व्यापार समझौते आरसीईपी में शामिल नहीं होने से भविष्य में भारत के निर्यात और निवेश प्रवाह को नुकसान पहुंच सकता है। समझौते का हिस्सा नहीं होने से व्यापार के मामले में भारत समूह के अन्य 15 देशों की प्राथमिकता सूची से अलग-थलग पड़ जाएगा।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) का यह बयान इस लिहाज से काफी महत्वपूर्ण लगता है कि देश के कुछ उद्योग क्षेत्र इस समझौते के खिलाफ हैं। क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के प्रस्तावित समझौते को लेकर कुछ घरेलू उद्योगों ने शुल्क संबंधी मुद्दे उठाये हैं। आरसीईपी देशों के नेताओं की शिखर बैठक सोमवार को बैंकाक में होने जा रही है। बैठक में इस वृहद व्यापार समझौते को लेकर राजनीतिक स्तर पर महत्वपूर्ण बातचीत हो सकती है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बैंकाक के लिये रवाना होने से पूर्व शनिवार को कहा कि जब वह आरसीईपी की शिखर बैठक में भाग लेंगे तो भारत यह देखेगा कि माल एवं सेवाओं के व्यापार और निवेश में उसके हितों को पूरी तरह से समझौते में समायोजित किया गया है अथवा नहीं। भारतीय उद्योग परिसंघ का कहना है कि आरसीईपी का हिस्सा नहीं होने से वैश्विक और क्षेत्रीय श्रंखला के साथ जुड़ने के भारत के प्रयासों में रुकावट आयेगी क्योंकि जितने भी तरजीही और व्यापक आधार वाले समझौते होते हैं उनसे समूची श्रंखला में निवेश और वृद्धि को बढ़ावा मिलता है।
सीआईआई ने कहा, 'समझौता होने के बाद आरसीईपी समूह में शामिल देशों के साथ व्यापार बढ़ने की संभावना है। समूह का हिस्सा होने के नाते भारत को बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार बढ़ाने के अवसर उपलब्ध होंगे और उसका निर्यात बढ़ेगा। समूह का हिस्सा नहीं होने की स्थिति में भारत को इन देशों के बाजारों में तरजीही पहुंच नहीं मिलेगी और निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता का भी नुकसान होगा।'
उद्योग जगत के मुताबिक 16 सदस्य देशों का आरसीईपी समझौता दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक समूह होगा जिसमें सदस्यों को मुक्त व्यापार की सुविधा होगी। यह यूरोपीय संघ से भी बड़ा समूह होगा। वर्ष 2017 के मुताबिक आरसीईपी देशों में दुनिया की 47.6 प्रतिशत आबादी रहती है और यह वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 31.6 प्रतिशत हिस्सेदारी रखते हैं। वैश्विक व्यापार में इन देशें का हिस्सा 30.8 प्रतिशत है।